राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि जीवन जीने के दो रास्ते हैं-संत जीवन और गृहस्थ जीवन। व्यक्ति संत जीवन में है या गृहस्थ जीवन में यह महत्त्वपूर्ण नहीं है बल्कि वह कैसा जीवन जी रहा है यह खास बात है। जनक, भरत, पुणिया जैसे गृहस्थ लोग भी संत की तरह जीवन जी लिया करते हैं तो कुछ संत होकर भी दुनियादारी में उलझ जाते हैं। महावीर जैसे लोग 30 साल की भरी जवानी में भी संन्यास ले लेते हैं तो दूसरी तरफ 70 साल का बूढ़ा आदमी भी मोह-माया में फँसा रह जाता है।
दशरथ सिर के एक सफे द बाल देखकर वैराग्य से भर गए और यहाँ तो सिर के सारे बाल ही सफेद हो चुके हैं, पर कहीं वैराग्य की किरण भी नजर नहीं आती। भले ही हम कपड़े बदलकर संत बन पाएं कि न बन पाएं, पर मनोदशाओं को बदलकर पहले गृहस्थ संत अवश्य बन जाएं। संत ललितप्रभ कोरा केन्द्र मैदान में अध्यात्म सप्ताह के पहले दिन सीखें, निर्लिप्त होने की कला विषय पर जनमानस को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भगवान ने हमें दो हाथ दिए हैं। हम एक हाथ से इतनी समृद्धि बटोरें कि सिकन्दर बन जाएं और दूसरे हाथ से इतनी शांति की दौलत अर्जित करें कि महावीर बन जाएं।
कहीं ऐसा न हो कि समृद्धि तो हमारे हाथों में आ जाए, पर शांति की दौलत चली जाए। याद रखना, दुनिया को जीतने वाला सिकन्दर भी एक दिन खुद के सामने हार गया था, जब विश्वसाम्राज्य देने को तैयार हो जाने पर भी उसे एक घंटे की जिंदगी अतिरिक्त न मिल पायी। उन्होंने कहा कि आज तक
कोई भी इंसान न तो धन और वासना से तृप्त हो पाया न ही पद और यश से। लखपति करोड़पति होना चाहता है और करोड़पति खरबपति, अरे जब पहले से ही किसी पत्नि के पति हो तो फिर और कौनसे पति होना चाहते हो। उन्होंने कहा कि संसार कुछ नहीं, एक सपना है। जब आँख खुलती है तो नींद के सपने टूट जाते हैं और जब आँखें बंद हो जाती है तो संसार के सपने टूट जाते हैं।
उठावणे में जाने वाले सावधान रहें-चुटकी लेते हुए संतश्री ने कहा कि कोई मर जाए तो पीछे उठावणा होता है। उठावणे में जाने वाले सावधान रहें क्योंकि उठावणा और कुछ नहीं उठने की सूचना है। वो उठ गया और सावधान, आपका भी नंबर आने वाला है। लोग शोक प्रकट करने के लिए नहीं, केवल इसलिए उठावणे में जाते हैं कि अगर मैं नहीं गया तो कल मेरे उठावणे में कौन आएगा?
मंदिर और श्मशानों को हो स्थान परिवर्तन-मंदिर और श्मशानों का स्थान परिवर्तन करने की सलाह देते हुए संतश्री ने कहा कि अब मंदिर शहर के बाहर होने चाहिए ताकि व्यक्ति शांति से प्रभु का भजन कर सके और श्मशान शहर के बीचोबीच होने चाहिए ताकि व्यक्ति झूठ-जांच, कूड़-कपट, तेरी-मेरी की भावना से थोड़ा उपरत हो सके कि अततः तो मुझे यही आना है। बुद्ध का उदाहरण देेते हुए संतप्रवर ने कहा कि गौतम बुद्ध ने एक बार गर्भवती स्त्री, बीमार आदमी, बूढ़े व्यक्ति और शवयात्रा को देखा तो संसार से अनासक्त हो गए, पर व्यक्ति कितनी बार ऐसे दृश्यों को देखता है, अपने हाथों से बाप-दादों को तूली लगाकर आता है फिर भी जीवन में कहीं कोई परिवर्तन नजर नहीं आता।
श्मशान से वापस आते ही वही दुनियादारी और वही दुकानदारी। मानो, मरा कोई और है मैं थोड़े ही मरने वाला हूँ। गिला और गुमान न करें-गिला करने वालों को संतश्री ने कहा कि दुनिया में चाहे करोड़पति आए या रोड़पति सबके आने और जाने का तरीका एक जैसा है फिर किस बात का गिला। गुमान करने वालों से संतश्री ने कहा कि जब-जब मिट्टी पर नजर चली जाए तो सोचना एक दिन इसी मिट्टी में मिलना है और जब-जब आकाश की ओर नजर जाए तो सोचना एक दिन ऊपर चले जाना है फिर किस बात का गुमान। अरे, जिंदगी में जमीन का धंधा करने वाले और कपड़े बेचने वाले को मरते समय छरू फु ट जमीन और दो गज कफन का टुकड़ा मिल जाए तो वह खुद को किस्मत वाला समझे।
इस काया और माया का अंत कैसा होगा कोई पता नहीं है।
अगर पुरुष आँख मारना और महिलाएं ताने मारना छोड़ दे तो धरती स्वर्ग बन जाए। आसक्ति का नाम ही मिथ्यात्व है-भीतर में पलने वाली आसक्तियों का विवेचन करते हुए संतश्री ने कहा कि व्यक्ति शरीर,धन, सेक्स, रूप, रंग, गहने, जमीन और जायदाद के प्रति आसक्त होता है। चाहे गौरी चमड़ी हो या काली राख के स्तर पर तो सब एक होना है फिर किस बात का मोह।
उन्होंने कहा कि संसार का सेवन तो प्यास के छिलकों को उतारना और कुत्ते के द्वारा हड्डी को चबाना है चाहे कितना ही सेवन कर लो अंत में तो अतृप्ति के अलावा कुछ हाथ नहीं लगने वाला। व्यक्ति सोचे कि हजार बार भोगकर भी क्या वह कभी तृप्त हो पाया। अगर वह यूँ ही डूबा रहेगा तो फिर कब मुक्त हो पाएगा।
शरीर को सोने से सजाना और कुछ नहीं मिट्टी से मिट्टी को सजाना है और इसमें आसक्त होने का नाम ही मिथ्यात्व है। व्यक्ति ईट, चूने, पत्थर से मकान बनाता है। मकान गिर जाए तो इंसान को रोना आता है, पर इंसान गिर जाए तो क्या मकान को रोना आता है। ईट-चूने-पत्थर के मकान में चेतना की आसक्ति मूच्र्छा नहीं तो और क्या है।
दिव्य सत्संग की शुरुआत सत्संग लाभार्थी मदनलाल प्रेमदेवी, मूलचंद जैन, श्रीमती चंदू जी जैन द्वारा दीपप्रज्वलन के साथ किया गया। समिति के उपाध्यक्ष श्री पारस चपलोत ने बताया कि कोरा केन्द्र मैदान में मंगलवार को प्रातः 8.45 बजे श्री चन्द्रप्रभ आत्मविष्वास जगाने के प्रभावी प्रयोग विषय पर जन समुदाय को संबोधित करेंगे।