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कट जायेगी चौरासी, तु प्रभु का भजन कर ले

 पू.आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने फरमाया कि.., एक बार भजन करते, मुक्ति का जतन कर ले, कट जायेगी चौरासी, तु प्रभु का भजन कर ले ।।

एक बार गुरु और शिष्य का संवाद चल रहा था शिस्य ने पुछा श्रावक की पहचान क्या है?

पहचान से पता चलता है कौन कैसा होता है!

श्रावक की क्या पहचान है? लोगों की भीड़ में कौन आपकी पहचान कर सके। पहचान के दो रुप है…

🔻एक पहचान पहनावे (वेशभुषा ) से होती है। बाह्य पहचान होती है। यह सही व गलत भी हो सकती है,,

 दो पहचान है श्रावक की-

① *श्रावक पाप भीरू होता है* पाप से डरता है वह श्रावक होता है। जन्म लेने मात्र से श्रावक नहीं बनता। वकील या डॉ के घर जन्म लेने से नही.. पुरुषार्थ से बनता है। पाप के पति डर नही वह श्रावक नहीं होता है,, आप पाप करते है तो डर पैदा होता है, संकोच होता है, में इस पाप की सजा नहीं भोग नहीं सकता, पाप की अनिच्छा है तो आप श्रावक है।

श्रावक पाप कर रहे हे , भगवान ने कहा है कि *जमीकंद में अनंत* जीव है। सुई की नोक पर साधारण वनस्पतिकाय का जरा सा जीव अनन्ता अनन्त जीव है। समझ में आ गया तो जमींकद खाने में संकोच करेंगे।

लोग लालीबाई के वशीभूत होकर जमीकंद का उपयोग करते है उसके मन में जीव के प्रति करुणा नहीं। संसार गर्त में जा रहा है हम नहीं जायेंगे।

🔻कभी मजबुरी से पाप करते है,, वह दिन धन्य होगा जब में *आरंभ ,परिग्रह* का त्याग करके अणगार बनूँगा ।श्रावक आरंभ परिग्रह का त्याग करने का चिंतन करता है,, में मुनि व्रत को स्वीकार करूँगा ,,

कोई संसार छोडना चाहता है तो लोग पकड़कर रखते हैं। महापुरूष संघर्ष करके आगे बढ़े। कितनो ने ही अपना मनोरथ पुरा किया।

*संसार छोडने जैसा है संयम ऐने जैसा है।*

दीक्षा – *1 प्लेटिनम दिक्षा* (सबसे महंगी धातु) संयम लेता है तो यह प्लेटिनम दिक्षा है। 10 से 20 साल की उम्र में जो संयम लेता है ।

2 *गोल्ड दीक्षा* – 20 से 30 की उम्र में लेने वाली दिक्षा

3 *सिल्वर दीक्षा* – 30 से 40 की उम्र में दिक्षा

4 *आयरन दीक्षा* 40से 50 की उम्र में दीक्षा लेता है वह आयरन दीक्षा है।

आचार्य हस्तीमल जी मासा. 21 साल की उम्र में आचार्य बने 70 साल तक आचार्य रहे। छोटी उम्र में साधु बने । श्रावक के मन में पाप से डर होता है।

*तेरा किया जो तुही भरे, किस लिये पाप करे*,, *अपनापन धोखा है कोन किस का होता है।*

अपना यह संसार नहीं, सुख दुःख का नाता,

 ममता के तनमन फसकर व्यर्थ क्यो पाप करे,

प्राणी-भोले प्राणी, तेरी दो दिन की जिंदगानी ।

 प्रभु भजन बीत गई, फिर लोट कर नही आनी।।

 🔻में किसके लिये कर रहा हूँ। पुण्य का उदय है पाप कर रहा है , जब पाप खड़ा होता है रुआ- रुआ दुःखी होता है। यह शरीर रोगों से घिर जाता है फिर मन पर पर असर होता है मन बैचेन हो जाता है, धन पर अटेक हुआ

धन चला जाता है व्यक्ति निर्धन हो जाते है।

पूण्य हमारा प्रधानमंत्री है , धर्म हमारा राष्ट्रपति है , जब आपका प्रधानमंत्री साथ है तो फिर क्या..

पाप ओर पूण्य को सुनते है पर समझते नही जिस दिन समझ जाओगे तो आप पाप से डरेंगे,,,

आपके भीतर पाप के प्रति डर है तो *आप श्रावक है*,, नही तो आप ठीक है , पाप से डरने वाले त्यागी बनते है ,, पाप को समझो ..

🔻 *पाप करने में आसान भोगने में कठिन है , पूण्य करने में बहुत कठिन है भोगने में आसान है।*

👀 पाप को सुनना,सुनाना आसान है समझना कठिन है जिसने समझ लिया वह पाप का त्यागी बन जाता है ।

🔻 जो पाप करके प्रसन्न होता है वह पाप के पावर को बढ़ाता है, जीवन मे *पाप करके प्रसन्न नही होना*, पाप नही छोड़ सकते पर पाप करके पश्चयाताप करना तो पाप का पावर कम हो जायेगा वह कभी न कभी छूट जायगा।

पाप को समझने से पाप के प्रति अरुचि होती है,

*प्रतिक्रमण* करना प्रायश्चित है।

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