तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता-शांतिदूत-अहिंसा यात्रा के प्रणेता-महातपस्वी, महाप्रज्ञ पट्टधर आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपने मंगल पाथेय में फरमाते हुए कहा कि अहिंसा की साधना करने वाले व्यक्ति को अप्रिय वाणी को भी सहन करना चाहिए। अगर कोई कठोर या अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करें तो उस परिस्थिति में भी शांति रखनी चाहिए।
किसी के कहने से नहीं बल्कि अपने गुणों से व्यक्ति छोटा या बड़ा नहीं बनता है। गुस्से और आवेश के बिना शांति से भी प्रतिकार किया जा सकता है। आवेश भी एक प्रकार की अग्नि है जिसमें व्यक्ति को झुलसना नहीं चाहिए। आवेश या गुस्सा किसी भी परिस्थिति में हो, किसी भी स्थान पर हो नुकसानदेह होता है।
गुस्से से अगर किसी को कुछ बोला जाए तो वह एक या दो बार बात सुनेगा तीसरी बार वह आपका प्रतिकूल जवाब देने लग जाएगा। वही बात अगर प्रेम से बोली जाए तो इसका जवाब सकारात्मक और प्रेममय मिलेगा। किसी व्यक्ति को अगर जवाब देने का अवसर मिले तो कोशिश यह रहे कि जवाब जबान से ना देकर अपने काम से दिया जाना चाहिए।
आचार्यप्रवर ने आगे कहा अगर व्यक्ति का किया काम बोलेगा तो निंदक स्वतः ही शांत होते जाएंगे। जीवन में कुछ लोग ईंट का जवाब पत्थर से देने में विश्वास रखते हैं परंतु इसका जवाब अगर फूल से दिया जाए तो भी कई बार परिस्थितियां अच्छी हो जाती है। हर जगह जीवन में अकड़ काम नहीं आती कहीं-कहीं पर झुकना भी अच्छा हो सकता है।
सामने वाला झुके ना झुके हमारा व्यवहार अगर प्रेम पूर्वक रहेगा तो हमारी आत्मा पवित्र बनेगी। हमें अपनी आत्मा को पवित्र रखने के लिए अप्रिय वाणी को सहन करना चाहिए। चाहे किसी भी संस्था हो कोई भी परिवार को सहन करने से समस्या का समाधान हो जाता है और कई बार समस्या उत्पन्न होने से पहले ही समाप्त हो जाती है।
केवल छोटे ही नहीं बल्कि मुखिया को भी सहन करने की क्षमता रखनी चाहिए। उग्रता से परिस्थितियां बिगड़ जाती है। दो बात की चार बात सुनाना आसान होता है परंतु हमें अपनी ताकत को परिस्थिति को और बिगाड़ने में नहीं बल्कि परिस्थिति को सुधारने में समाहित करनी चाहिए।
प्रवचन के दौरान मुनि दिनेशकुमारजी की संसारपक्षीय माता साध्वी श्री सोम्यमूर्ति की जीवनी “जननी” का लोकार्पण चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर, दीपचंद नाहर और साध्वीश्री के परिवारजनों ने किया। प्रवचन में आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष श्री लूणकरण छाजेड़ ने अपनी भावनाएं व्यक्त की। ज्ञानशाला परिवार की तरफ से गीतिका की प्रस्तुति की गई।