भारत नगर, के.जी.एफ., कोलार (कर्नाटक): कंचन नगरी के.जी.एफ. की धरती को अपने ज्योतिचरण से पावन बना, अपनी अमृतवाणी से आध्यात्मिकता की चमक बिखेर शनिवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने के.जी.एफ. नगरी से मंगल प्रस्थान किया। कल तक जो भक्त अपने आराध्य के स्वागत में आह्लाद भाव के साथ जुटे हुए थे, वही श्रद्धालु अपने आराध्य को विदाई देने को निकल रहे थे।
इन दोनों क्षणों में एक ही अन्तर था, एक समय दर्शन की प्यास दिखाई दे रही थी तो अब चेहरे पर तृप्ति के भाव नजर आ रहे थे। आचार्यश्री ने नगर स्थित सेठिया परिवार के निवास स्थान से शनिवार को प्रातः की मंगल बेला में प्रस्थान किया। नगरवासी आचार्यश्री के दर्शनार्थ उमड़ पड़े। मार्ग में अनेक श्रद्धालुओं ने अपने घरों व प्रतिष्ठानों के आसपास आचार्यश्री से मंगलपाठ का श्रवण किया।
सभी को अपने दर्शन और आशीष से तृप्त करते आचार्यश्री नगर से बाहर की ओर गतिमान हुए। लगभग आठ किलोेमीटर का विहार आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ के.जी.एफ. के बाहर भारत नगर में स्थित जैन स्कूल में पधारे। स्कूल से संबंधित अधिकारियों, शिक्षकों व विद्यार्थियों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। स्कूली बैंड के बीच पंक्तिबद्ध विद्यार्थी जयकारे लगा रहे थे। आचार्यश्री सभी पर आशीषवृष्टि करते हुए स्कूल परिसर में पधारे।
आगमन के कुछ समय पश्चात ही समुपस्थित विद्यार्थियों को आचार्यश्री ने अंग्रेजी भाषा में अहिंसा यात्रा के संकल्प स्वीकार कराए और पावन प्रेरणा प्रदान की। तत्पश्चात उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य जीवन आदमी को बहुत ही सौभाग्य से प्राप्त होता है।
मनुष्य जीवन को दुर्लभ बताया गया है। ऐसे दुर्लभ मानव जीवन का पूर्ण लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। एक कथानक के माध्यम से आचार्यश्री ने मनुष्यों के तीन प्रकार बताते हुए कहा कि कुछ मनुष्य जो पाप का आचरण करने वाले होते हैं। हिंसा, हत्या, मारकाट, पंचेन्द्रिय वध, झूठ, माप-तौल में गड़बड़ी करते हैं। वैसे मनुष्य नरक अथवा तिर्यंच गति में जाते हैं। अर्थात वे मनुष्य गति से भी नीच गति में चले जाते हैं। वे मनुष्य जन्म रूपी पूंजी को गंवा देते हैं।
दूसरे प्रकार के मनुष्य वे होते हैं जो न तो पाप करते हैं, न पुण्य करते हैं। धर्म भी नहीं करते और सरल होते हैं और सरल बने रहते हैं। वे पुनः मनुष्य गति को प्राप्त कर लेते हैं। अर्थात् वे मनुष्य जीवन रूपी पूंजी को न घटाते हैं और न बढ़ाते हैं, बल्कि यथावत रखने वाले होते हैं।
तीसरे वे मनुष्य होते हैं, जिनका जीवन धर्म, साधना, परोपकार करना, धर्म करते हैं, सेवाभावी होते हैं, वे देवगति में चले जाते हैं अथवा मोक्ष का वरण भी कर सकते हैं। आदमी को अपने मानव जीवन रूपी पूंजी को और अधिक बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए और सत्कर्म करते रहने का प्रयास करना चाहिए। धर्म में समय लगाना मानव जीवन के लिए कल्याणकारी साबित हो सकता है।
आचार्यश्री ने जैन स्कूल में आगमन के संदर्भ में आशीष प्रदान की। श्री मंगलचंद बांठिया व श्री सोहनलाल बांठिया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। श्री देवराज सोनी ने गीत का संगान किया। बालक श्रेष्ठ बांठिया ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तेरापंथ युवक परिषद-विजयनगर द्वारा प्रकाशित डायरेक्ट्री को अभातेयुप के अध्यक्ष श्री विमल कटारिया आदि ने आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की।