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ओस बिंदु के समान क्षणभंगुर है यह जीवन: जयधुरंधर मुनि

ओस बिंदु के समान क्षणभंगुर है यह जीवन: जयधुरंधर मुनि

श्री जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में जयधुरंधर मुनि के सानिध्य में जयपुरंदर मुनि ने उत्तराध्ययन सूत्र  का वांचन करते हुए कहा मनुष्य जीवन ओस बिंदु के समान क्षणभंगुर है।

जिस प्रकार वृक्ष का पत्ता पीला होने पर कब नीचे गिर जाए पता नहीं चलता है, ठीक इसी प्रकार मनुष्य जीवन का कोई भरोसा नहीं है। अल्पकाल के इस जीवन में भी अगर व्यक्ति चाहे तो पूर्वकृत कर्म रज को आत्मा से दूर कर सकता है।

सुदीर्घकाल के संसार परिभ्रमण के पश्चात यह मनुष्य जीवन प्राप्त होता है। अतः क्षण मात्र कभी प्रमाद नहीं करना चाहिए। भगवान महावीर ने दसवें अध्ययन में 36 बार इस बात को दोहराया जिससे प्रमाद त्याग का महत्व उजागर होता है।

मनुष्य जन्म प्राप्त करने के बाद आर्य क्षेत्र, परिपूर्ण इंद्रियाँ, धर्म श्रवण, श्रद्धा, आचरण का अवसर मिलना और भी दुर्लभ होता है। कोई यह सोचे धर्म आराधना कल कर ली जाएगी। कल आए या ना आए काल कभी भी आ सकता है। वृद्धावस्था में इंद्रियों का बल क्षीण हो जाने से चाहते हुए भी सम्यक प्रकार से उत्कृष्ट धर्म की आराधना करना संभव नहीं है।

इसीलिए मनुष्य समय रहते ही यौवन अवस्था में ही जागरुत बनना चाहिए। समय बड़ा बलवान होता है जिसके आगे किसी का भी जोर नहीं चल सकता। जीवन की क्षणिकता का बोध होने पर अनासक्ति के भाव जागृत हो जाते हैं। जिस प्रकार कमल जल में उत्पन्न होने के बावजूद उससे पृथक रहता है।

इसी प्रकार कमल सम्मान निर्लिप्त जीवन जीने वाला साधक संसार में रहते हुए भी उसमें आसक्ति नहीं बनता है। आज वर्तमान समय में तीर्थंकर भगवान भले ही प्रत्यक्ष में मौजूद ना हो लेकिन उनके द्वारा प्रेरित मोक्ष का मार्ग वर्तमान में भी प्रशस्त है। जिस प्रकार कोई भी कंटीले एवं विषम मार्ग पर नहीं चलना चाहता उसी प्रकार साधक को सही मार्ग का चयन करते हुए उसकी ओर अग्रसर होना चाहिए।

मुक्ति मार्ग में निरंतर बढ़ते हुए साधक को पूरे उत्साह के साथ विश्राम ना करते हुए प्रगति करनी चाहिए तभी मंजिल हासिल की जा सकती है। संसार रूपी समुद्र को तेरते हुए किनारे पर पहुंच जाने पर खड़े रहने में कोई सार्थकता नहीं अपितु शीघ्रता पुरुषार्थ करते हुए दूसरे किनारे तक पहुंच जाना चाहिए।

मुनि ने 11 वें अध्ययन का सारांश बताते हुए कहा अहंकार, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य इन पांच कारणों से शिक्षा प्राप्त नहीं होती। मुनिवृंद के सानिध्य में 25, 26, 27 अक्टूबर को दीपावली पर्व के उपलक्ष में उत्तराध्ययन सूत्र का मूल पाठ का वांचन प्रातः 8:00 बजे से होगा तथा सामूहिक तेले तप का भी आयोजन किया गया है और 28 अक्टूबर को मुनिवृंद के मुखारविंद से प्रातः 8:30 महा मंगलिक होगा।

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