*विंशत्यधिकं शतम्*
*📚💎📚श्रुतप्रसादम्*
🪔
*तत्त्वचिंतन:*
*मार्गस्थ कृपानिधि*
*सूरि जयन्तसेन चरणरज*
मुनि श्रीवैभवरत्नविजयजी म.सा.
1️⃣0️⃣5️⃣
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एक समय में बंधे
कर्मो की निर्जरा हेतु
*अपार ऊर्जा की*
*आवश्यकता रहती है..*
🧘♂️
अंतर्मुहूर्त मात्र की
क्षपक श्रेणीमें अनंत भवों के
संचित कर्म भस्मीभूत हो जाते हैं.!
❌
विषय भोग में
लिप्त व्यक्ति कभी भी
भव वन को पार
नहीं कर सकते क्योंकि
🔥
उनकी
समस्त ऊर्जा तो
भोगविलास में ही लगी है,
आत्म उत्थान के
पुरुषार्थ हेतु उनके पास,
न समय रहता, है न सत्त्व..
💯
तीनो योग का आत्मध्यान में
एकाग्र होना तभी संभव है
जब साधक विषयों से
अलिप्त रहता है.!
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अतः
जो विषयों से अलिप्त,
निरपेक्ष एवं निवृत्त रहता है
वही भव वन को
पार कर सकता है..!
*📚श्रीज्ञाताधर्म कथा*