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ज्ञान वाणी

एक पल भी गंवाए बिना जीवन को धर्म में लगाएं: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

एक पल भी गंवाए बिना जीवन को धर्म में लगाएं: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

चेन्नई. गुरुवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज के प्रवचन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। उपाध्याय प्रवर ने सामायिक की साधना के बारे में बताया। परमात्मा ने बताया है कि कोई पन्द्रह प्रकार से संसार के सारे जंजालों से मुक्त हो सकता है। दुनिया का एकमात्र जैन धर्म ही है जो इतनी आजादी देता है। जिनशासन कहता है कि तुम जैन नहीं बने तो भी मोक्ष में जा सकते हो। चाहे जिस भी रास्ते जाओगे सामायिक से ही जाओगे। जितने भी सिद्ध हुए हैं वे सभी सामायिक की प्रक्रिया से ही मोक्ष में गए हैं। भाषा, क्रिया, पहनावा, स्थिति अलग हो सकती है लेकिन भावना सामायिक की ही होगी। ऐसी सूचनाओं की संरचना जिससे कोई भी जीव इस अनुभूति में पहुंच जाता है। वही सामायिक है। जैन धर्म बताता है कि सामायिक में स्वयं के साथ दूसरों के भी नरक गति के बंधों को तोड़ा जा सकता है।

जो सामायिक करता है उसके सामायिक में दूसरों के पापों को तोडऩे का भी सामथ्र्य होता है। गंधर्व भगवंतों ने बताए हैं उन्हें ही आगम में सामायिक सूत्र कहा गया है। सामायिक कैसे करनी चाहिए जिससे उसकी अनुभूति में पहुंचे। एक मिनट की सामायिक हो जाए तो भी दो गति के बंधन सुधर जाएंगे। आपके रिश्ते सुधरकर, जीवन बदल जाएगा, दु:ख लेना या देना नहीं होगा, इस अनुभूति तक पहुंच जाएं तो सामायिक में आनन्द जाएगा। इसकी प्रक्रिया यदि आप सीख जाएं तो आप मंजिल तक जरूर पहुंच जाएंगे। केवल कला और केवल साइंस से काम नहीं चलेगा बल्कि दोनों के सामंजस्य से ही काम चलेगा। ज्ञान तो सूचनाओं से आएगा लेकिन कला प्रैक्टिकल करने पर ही आएगा।

आज विज्ञान भी अपनी सीमा कबूल कर चुका है कि वह पदार्थ का भी पूरा रहस्य नहीं जान सका है। धर्म को पूर्णत: जाने बिना विज्ञान को समझना मुश्किल है वास्तविक धर्म के बिना विज्ञान चल ही नहीं सकता। विज्ञान और धर्म एक-दूसरे के पूरक हैं। जो धर्म को मानता है वही विज्ञान है और जो विज्ञान है वही हमारे धर्म में बताया गया है। धर्म आत्मशांति और आत्मा की खोज के लिए कहता है। धर्म के विज्ञान को समझें और जो हमारे आत्मोत्थान के लिए परमात्मा ने बताया है उसका अनुकरण करें।

आचारांग सूत्र में परमात्मा ने संसार का ताना-बाना खुलकर बताया है। उन्होंने कहा है कि लोभ करने वाला अपने धन से ज्यादा और स्वजनों से कम प्रेम करता है, परिणामस्वरूप परस्पर तिरस्कार करते हैं।  रिश्तों का मोह व्यक्ति को सम्बल और सांत्वना दे सकता है लेकिन बुढ़ापे, बीमारी और मृत्यु से नहीं बचा सकता, उसके दु:खों को दूर कर उसे सुख दे नहीं सकता। यह सब जीव को स्वयं ही भुगतना ही पड़ता है। परमात्मा कहते हैं कि इस सच्चाई को जानें, स्वीकार करें और समय से पहले सम्भल जाएं। अपना तन बूढ़ा होकर जर्जर हो जाए, शक्ति क्षीण होकर बीमारियां आ घेरे और मृत्यु निकट आए उससे पहले जवानी रहते धर्मकार्य कर लें। इस सीमा को स्वीकार करें, अपनी मानसिकता को बदलें।

प्रकृति को छिपा सकते हैं लेकिन इसे बदल नहीं सकते, आपकी अन्तरात्मा तो सबकुछ जानती है। आपको प्रेम करने वाले कल आपसे नफरत भी कर सकते हैं। यह संसार जीव को भरमाता है, उलझाता है। सभी को एक समय मरना है लेकिन उसकी तैयारी कोई नहीं करता। ऐसे चक्रवर्ती जिनके सेवक देवता भी उन्हें दु:ख, बीमारी और कर्मों के फल भुगतने से नहीं बच पाए। परमात्मा ने आचारांग सूत्र कहा है कि इन दु:खों के समय में संयम रखकर अपनी अक्ल को मैनेज करना सीखें, एक पल का भी प्रमाद किए बिना अपने जीवन को संयम, नियम, तप, व्रत और आराधना के पथ पर अग्रसर हो जाएं।

श्रेणिक चरित्र का भी श्रवण कराते हुए कहा कि इस जग में सदैव अधिकारों की लड़ाई चलती रहती है, एक दूसरे के अधिकार को हथियाने का षडय़ंत्र करते रहते हैं।  स्वार्थी व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए दीर्घकाल की चिंता करते हुए व्यवहार करने लगता है।

तीर्थेशऋषि महाराज ने भक्तिगीत ‘‘एक बार भजन कर ले…’’ का श्रवण कराया। उन्होंने नन्दीसेन महाराज के प्रसंग द्वारा बताया कि जीवन में संयम, नियम और व्रत के पालन करने से बड़े से बड़े संकटों का निवारण हो जाता है। नन्दीसेन महाराज ने भविष्य की चिंता किए बिना संयम धारण किया और उसका निष्ठापूर्वक पालन करते हुए पुन: धर्म मार्ग पर लौट पाए। जिसमें संयम, नियम का ओज होता है, वे ही भोग-विलास के बीच के बीच में भी संयम-मार्ग पर प्रवृत्त हो सकते हैं। हमारा यह जीवन नश्वर है, जीव की गाड़ी न जाने कब, किस समय रूक जाए, इसको कोई नहीं जानता। इसलिए नियम, संयम और व्रतों का पालन अपने जीवन में अवश्य करें। जो धर्म मार्ग पर अडिग रहता है धर्म उसकी रक्षा करता है।

धर्मसभा में विमला पारख ने 33 उपवास और सुभाष खांटेड ने 32वें मासखमण के 22 उपवास के पच्चखान लिए। चातुर्मास समिति द्वारा तपस्वीयों का सम्मान किया गया और उपस्थित जनसमूह ने तपस्या की अनुमोदना की। 30 सितंबर को प्रात: नवकार कलश स्थापना और अनुष्ठान का कार्यक्रम और दोपहर 2 से 4 बजे तक अर्हम पुरुषाकार ध्यान साधना का कार्यक्रम रहेगा।

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