चेन्नई. रायपुरम स्थित सुमतिनाथ जैन भवन में विराजित आचार्य मुक्तिप्रभ सूरी के सान्निध्य में आचार्य विनीतप्रभ सूरी ने कहा पर्यूषण महापर्व आध्यात्मिक शक्ति बढ़ाने के लिए आता है। वर्ष में लौकिक और लोकोत्तर दोनों प्रकार के पर्व आते हैं।
लौकिक पर्वों में लोग खाते-पीते हैं और मौज-मनोरंजन आदि करते हैं लेकिन लोकोत्तर पर्वों में साधक अपनी आत्मा के पवित्र करता है। लोकोत्तर पर्व आते ही आत्मा के कर्म धोने के लिए हैं। शरीर, कपड़े और घर को तो बहुत धोया है लेकिन पर्यूषण कह रहा है कि अब जरा मन को भी धो लें।
विषय कषाय की मिट्टी सालभर में जम जाती है सालभर के 11 कर्तव्यों का पालन किया है या नहीं। संघ भक्ति साधार्मिक भक्ति की है या नहीं, यात्रात्रिक स्नात्र महोत्सव, देवद्रव्य की वृद्धि, महापूजा, रात्रि जागरण, श्रुत भक्ति, उद्यापन, शासन प्रभावना एवं आलोचना आदि की है या नहीं।
केवली भगवान ने श्रीसंघ को तीर्थ रूप मानकर वंदन किया है। श्रीसंघ की भक्ति करने का अवसर जिसे मिलता है वह भाग्यवान होता है। पूरा संसार ही एक संघ समुदाय है।
यहां जीव परस्पर एक-दूसरे पर आधार रखकर जीते हैं। इसीलिए भगवान महावीर ने कहा है जीओ और जीने दो। उन्होंने जीव मैत्री की बात कही और दुखी जीवों के प्रति करुणा करने को कहा है।