चेन्नई. कोडम्बाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा मन में जो समता को धारण करते हैं वो मुक्त हो जाते हैं। इससे केवल ज्ञान केवल दर्शन प्राप्त होता है। दुखी मन होने के बाद भी मनुष्य संसार के मोह को नहीं छोड़ रहा है।
संसार में रहते हुए भी खुश रहा जा सकता है लेकिन अपनी अज्ञानता की वजह से मनुष्य भटक रहा है। अगर सच्चे मन से धर्म आराधना की जाए तो मार्ग बदल सकते है। वर्तमान में लोग कहीं भी बैठ कर धर्म आराधना करने लगते हैं जिससे उनका मन नियंत्रित नहीं हो पाता है।
याद रहे शांत स्थान पर जाकर ही धर्म आराधना करनी चाहिए। हर काम हर जगह पर करना संभव नहीं होता। ऐसा करने के बाद ही मन की शांति बनी रहेगी। सामयिक करते समय भावों की शुद्धि होनी चाहिए। मन बेचैन और चिंतामुक्त होना चाहिए।
सामयिक में किसी व्यक्ति और उसके दुख को याद नहीं करना चाहिए। जिस समय मन बेचैन हो उस समय सामायिक नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से किसी प्रकार का लाभ नहीं मिलेगा। बाहर से नहीं अंदर आत्मा से जागना है।
ऊपर से जागने से कुछ हासिल नहीं होगा। धर्म ध्यान के समय अंदर से जागने की जरूरत होती है। जो मनुष्य जाग जाएगा उसका कल्याण हो जाएगा।
सोते हुए जीवन को बर्बाद करने के बजाय जग कर आबाद करने का प्रयास करना चाहिए। पर्यूषण पर्व अंधकार से प्रकाश में ले जाने के लिये आता है इसका लाभ ले लेना चाहिए।