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ऊंचे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य के भीतर ललक के साथ उत्साह आवश्यक है : देवेंद्रसागरसूरि

ऊंचे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य के भीतर ललक के साथ उत्साह आवश्यक है : देवेंद्रसागरसूरि

ऊंचे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य के भीतर ललक के साथ उत्साह आवश्यक है। ललक सब में होती है, लेकिन उत्साह के अभाव में अधिकांश लोग उलझ जाते हैं। उपरोक्त बातें आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने श्री सुमतिवल्लभ जैन संघ में प्रवचन देते हुए कही। उन्होंने आगे कहा कि

सफलता के लिए किए जा रहे परिश्रम को ठीक से क्रियान्वित करना हो तो ललक के साथ उत्साह बनाए रखिए। लगन और उत्साह का लाभ समय प्रबंधन में मिलता है। सभी बड़ी हस्तियां समय प्रबंधन को साधकर ही सफलता की ऊंचाई तक पहुंची हैं। कार्य कितना महत्वपूर्ण है और उसे किस समय पर पूरा करना है, यह निर्धारित करना बहुत आवश्यक है। अधिकांश लोग ये दोनों बातें निर्धारित ही नहीं कर पाते। यहीं से उलझन शुरू हो जाती है। एक कार्य पूरा होता नहीं कि दूसरा काम हाथ में ले लिया जाता है। जो लोग सफलता के लिए जी-तोड़ मेहनत में लगे हैं, उन्हें यह समझ लेना होगा कि अपनी ललक को सार्थक क्रियारूप देने के लिए जीवन में उत्साह दिलाने वाले लोगों का साथ रखिए और साधनों का उपयोग करते रहिए।

मेहनत तो हर कोई कर लेता है, लेकिन सफलता की ऊंचाई तक पहुंचने पर अशांत लोग कम ही होते हैं। एक प्रयोग यह भी करें कि परिश्रम करते समय मन को विश्वास से भर दें कि हम जरूर सफल होंगे। यह उत्साह का ही रूप है। उन्होंने आगे कहा कि प्रयत्नशील व्यक्ति को कई बार कर्म में सफलता नहीं मिलती परंतु वह पश्चात्ताप का अनुभव नहीं करता। कर्म या प्रयत्न में आनंद का अनुभव करने वाला व्यक्ति फल प्राप्ति होने पर भी सुख प्राप्ति नहीं करता अपितु कर्म की अवधि में ही वह सुख का अनुभव करने लगता है। कई बार आनंद का संबंध किसी अन्य विषय में रहता है परंतु व्यक्ति में आनंद के कारण ऐसी स्फूर्ति उत्पन्न हो जाती है कि वह अन्य कार्यों में भी उत्साह का प्रदर्शन करने लगता है।

उत्साह के अतिरिक्त अन्य मनोविकारों में भी यह प्रवृत्ति पाई जाती है।उत्साह में प्रयत्न और कर्म संकल्प के साथ आनंद की उमंग विद्यमान रहती है। उत्साह में बुद्धि की तत्परता के साथ-साथ शारीरिक तत्परता भी आवश्यक है। शारीरिक तत्परता के अभाव में केवल बुद्धि की तत्परता को उत्साह नहीं कहा जा सकता। जिन कर्मों में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है, उन सबको उत्साह के अन्तर्गत समाहित किया जा सकता है। कष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के तीन भेद किए जा सकते हैं- युद्धवीर, दानवीर, दयावीर आदि। दयावीर में आत्म-त्याग का साहस आवश्यक है। तभी तीनों क्षेत्रों में उत्साह का संरचण हो सकता है।

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