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उपाध्याय पु. पुष्करमुनीजी म.सा. का 115 वाँ जन्मोत्सव आध्यात्मिक रुपसे संप्पन्न

उपाध्याय पु. पुष्करमुनीजी म.सा. का 115 वाँ जन्मोत्सव आध्यात्मिक रुपसे संप्पन्न

“साधना के शिखर” उपाध्याय पु. पुष्करमुनीजी म.सा. का 115 वाँ जन्मोत्सव आध्यात्मिक रुपसे संप्पन्न! पुष्कर नाम पवित्र है! अहंकार विरहीत जीवन के साक्षात भगवन! चलते फिरते कल्पव्रुक्ष समान थे !- महासाध्वी डॉ. राज श्री जी म.सा. आज आकुर्डी स्थानक भवन में साधना के शिखर पुरुष श्रध्येय उपाध्याय श्री जी पुज्यनीय पुष्कर मुनीजी महाराज साहब का जन्मोत्सव बड़े धुमधाम से जप, तप, धर्म आराधना, सामायिक एवं गुणानुवाद द्वारा मनाया गया!

साध्वी जिनाज्ञा श्री जी ने “ मेरा पुष्कर गुरुसा दरबार बड़ा प्यारा है” इस भजन से अपनी बात रखते समय गुलाब पिसा जाता है, सुवासिक परफ़्यूम के लिए, दीपक जलाया जाता हैl जगत-प्रकाश के लिए, धरती में बीज बोया जाता है अनाज के लिए उसी प्रकार संत की श्रेष्ठता होती है सर्वस्व अर्पण करनेके लिए! जीवन की चार व्यवस्था का ज़िक्र किया! मालमस्त ( पैसा,अहंकार, अकड़) , ढालमस्त ( मधुर वाणी), चालमस्त ( शिष्टाचार पुर्वक) कोई टॉंग खिंचाई करे तो मज़बूत रहो, हर हाल मस्त( हर परिस्थिति का सामना) !

उपांध्याय श्री जी के पॉंच शिष्य बड़े नामी रहे! आचार्य देवेन्द्र मुनीजी, प्रवर्तक पु. गणेश मुनीजी, उपाध्याय श्री रमेश मुनीजी, श्रमण संघीय सलाहकार पु. दिनेश मुनीजी एवं पु. नरेश मुनीजी म.सा. उस जमाने में गुरुदेव का कर्म सिध्दांत पर सुने प्रवचन से प्रभावित हो डाकु लक्ष्मण सिंग ने अपना जीवन परिवर्तित किया!

साध्वी समिक्षा श्री जीने भजनों द्वारा अपने श्रध्दा सुमन अर्पित किये! “ गुरु मात-पिता , गुरु बंधु सखा” गुरु होता सबसे महान, ज्यों देता सबको ज्ञान” नाम तुम्हारा है पावन, काम तुम्हारा मन भावन! करो गुरु चरणोंमे शत शत नमन!” डॉ. मेघाश्री जी ने गुरुदेव के साधना के बारेमे बताते हुये कहॉं कुछ भी हो कहॉं भी हो साधना का समय कभी भी चुकायॉं नही ! इसके बारेमे उसवक्त के महामहिम रांष्ट्रपती ज्ञानी झैलसिंग जी का ऑंखो देखा वर्णन बयान किया !

राष्ट्रपति जी का आगमन 11 बजे हुआ , गुरुदेव अपने समयानुसार साधना के लिए रवाना हो गये ! राष्ट्रपति महामहीमजीने गुरुदेव आनेतक इंतज़ार किया और गुरुदेव के मंगल आशिष लिए! और नियमित साधना के आधारपर महामहिमजीने उन्हे “ विश्व-संत “ उपाधि बहाल की! गुरु की व्याख्या का बयान इस प्रकार किया G-Goal Power ( लक्ष्य निच्शिती) U-Understanding power ( समझनेकी क्षमता) R-Remote Power ( नियंत्रण/काबु) U-Unity Power ( संघटन क्षमता)। डॉ. राज श्री जी म. सा. ने अपने बैराग्य कालसे , दिक्षा ग्रहण। संय्यम पथ के यात्रा दरम्यान अनेक प्रसंगोका वर्णन कर गुरुदेवने हर कठीण प्रसंग पर कैसा विजय प्राप्त किया इसके अनेक प्रसंगोका बयान किया! पुष्कर नाम पवित्र था! “सारे तिरंथ बार बार, पुष्कर तिरथ एक बार”!

ऑंखें बंद करु या खोलु मुझे दर्शन देना गुरवर यह भावना गुरुवर में थी! गुरदेव का जीवन अहंकार विरहीत था! गुरुदेव चलते फिरते कल्पव्रुक्ष समान थे! उनके दर्शन से सारी मनोकामना पुरी होती थी! स्वयं गुरदेव अपनी द्रुष्टी खो बैठे थे ! उनके गुरुदेव सपने में आकर एक साधना करनेका आदेश दिया औरसे साँधनासे उपाध्याय श्री जी की द्रुष्टी पुनर्स्थापित हुई! इसलिए वो साधना के शिखर कहलाते है! आँजके सभा मे शारदाजी चोरडीया।

आशिष जी झगडावत जवाहरजी मुथा ने अपने विचार रखे! मंजुजी संचेती ने एवं प्रकाश मुनोत ने भजन की प्रस्तुति रखी! अपने मनोगत मे संघाध्यक्ष सुभाष जी ललवाणी ने उपाध्याय श्री पुष्कर मुनीजी म.सा. के प्रति श्रध्दा जताते हुये गुरदेव के महिमा को एवं साधनाको नमन वंदन किया और ऐसे महापुरुषोकी सुशिष्याओंका आकुर्डी संघ को मिला चातुर्मास भाग्यवश बताया!

महासाध्वीयों की गुरु प्रति समर्पित भाव एवं केवल जप तप धर्म आराधना के माध्यम से आगे बढ़ रहे चातुर्मास की सराहना की ! और चारों साध्वीयों को अलग अलग पद से विभूषित करने की संकल्पना धर्म सभा में रखी! “ श्रमणी सौरभ” “श्रमणी उपासक” “श्रमणी गान कोकिला” “ श्रमणी जिनेश्वरी” ! आज के धर्मसभा मे उदयपुर, सुरत, पुना एवं अन्य क्षेत्रसे पधारे भक्तगणोका स्वागत एवं सन्मान श्री संघ द्वारा किया गया! पाठशाला के बच्चों ने गुरुवंदना संग स्तवन के माध्यम से सुंदर प्रस्तुति रखी! उपाध्याय श्री पुष्करमुनीजी की 40 वर्ष पुर्व की मांगलीक ज्यों डॉ. राज श्री म.सा. के पास संग्रहीत थी सुनाई गयी!

तीन दिवसीय जन्मोत्सव का कार्यक्रम सफल करनेमे निवर्तमान एवं वर्तमान विश्वस्तों का एवं संघ समाज का सहयोग एवं सहभाग महत्वपूर्ण रहा! गुरु पुंष्कर प्रश्न मंच मे प्रंथम तीन समुह को प्रशस्ति पत्र देकर सन्मानित किया गया! सिध्दी तप आराधक श्रीमती गुलाबबाई मुथा एवं सिध्दी जैन को सन्मानित किया गया!

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