सौभाग्य प्रकाश संयम सवर्णोत्सव चातुर्मास खाचरोद
उपदेशक 8 बातों पर उपदेश दे.. शांति, विरति, क्षमा, निर्वाण, पवित्रता, सरलता, कोमलता , लघुता: प्रकाश मुनिजी मासा ।
*क्षमा*- वात्सल्य पूर्ण ह्रदय वाला अपेक्षा नही रखता है , वात्सल्य से निर्जरा व अहिंसा भाव का पालन होता है यह बात *पुज्य प्रवर्तक श्री प्रकाश मुनिजी मासा* बताते हुए फरमाया कि
विचार अशुभ होना नीच गोत्र में जी रहे हो। किसी के प्रति उच्च विचार आये मतलब आप उच्च गौत्र में हो। *वंदना का लाभ* – नीच गोत्र का क्षय करता है उच्च गौत्र का बंध करता है। कमर और गर्दन झुकना चाहिए। श्रम करता है। आप भाव से वंदना कर लो। *27 वंदना* रोज करो। इसमें अनन्त कर्मों की निर्जरा हो जाती है। यह शार्ट कट है मोक्ष होने का। मोझ होना अर्थात कर्मो से मुक्ति । कर्म से मुक्ति यहीं होती है। *बड़ी साधु वंदना* रोज पढ़ना विशिष्ट निर्जरा होगी।
उत्राध्यन सूत्र में आता है कि वंदना करने से नीच गोत्र का क्षय, संसार में *यश* की प्राप्ती होती है। चिंतन चलता है, जिन शासन की बातो से ज्ञान मिलता है। अभी भी *अपेक्षा* है, दुःख है जहाँ *ऊपेक्षा* है वहाँ सुख है। अपेक्षा होगी तो बार बार ध्यान जायगा हम *अपेक्षा* रख कर ” हर क्रिया कर रहे है तो *दुःखी* है। अपेक्षा थी पूरी नहीं हुई तो कर्म बंधन चालु ! अब घर में समाज में किस भाव से जी रहे है? जहाँ ऊपेक्षा हे वहाँ भी सुख यहां भी सुख है। प्रतिक्रिया में (डबल) कर्म बंधन ज्यादा है, क्रिया में कर्म बंधन हे ।