दिवाकर भवन पर चल रहे पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के दुसरे दिवस पर अतंगड सूत्र का वाचन प्रतिदिन चल रहा है धर्मसभा को संबोधित करते हुए मेवाड गौरव प्रखर वक्ता रविन्द्र मुनि जी म.सा.ने कहा की उत्थान के समय विनाश नहीं होता प्रकति के प्राम्भ में 7-7 दिन अमृत दूध पानी आदि की वर्षा हुई उसके बाद प्रकृति में हरियाली हुई उस दिन प्रकृति को देखकर मनुष्य ने अहिंसक होने का प्रण लिया तभी से वर्षावास मनाने की परम्परा का जन्म हुआ हम महावीर के अनुयाई है हम श्रमणोपासक है परोक्ष में रखी हुई भावना जहर बन जाती है दूसरा कर्म है मान यानि अहंकार मुझे सम्मान नहीं मिला में हु जो सब कुछ में ही हु की भावना ही अहंकार है ,अहंकार सलाह लेने से डरता है। अहंकार अपनी उलझन खुद ही सुलझा लेना चाहता है। यह भी स्वीकार करने में कि मैं उलझा हूं, अहंकार को चोट लगती है। और हमारी सारी उलझन अहंकार से पैदा होती है और तुम उसी से सुलझाने की कोशिश करते हो।
सुलझाने में और उलझ जाते हो। उलझोगे ही, क्योंकि अहंकार उलझाने का सूत्र है, सुलझाने का नहीं।तुम्हारे जीवन की जैसी दशा है, जैसी विकृति है, जैसी रुग्ण अराजकता है, जिसके कारण पैदा हुई उस बीमारी को ही तुम औषधि बना रहे हो। बीमारी से शायद तुम बच भी जाते, लेकिन औषधि से बचने का कोई उपाय नहीं। और जिसने बीमारी को ही औषधि समझ रखा हो, उसकी उलझन का तो कोई अन्त हुआ है और न कभी होगा।एक बात सबसे पहले समझ लेनी जरूरी है- अपने भीतर सदा खोजना, किसके कारण उलझन है और तब कुछ विपरीत की तरफ जाना, वहां से सुलझाव आ सकेगा। अहंकार उलझन है, समर्पण सुलझाव होगा। अहंकार ने रोग निर्मित किया है; समर्पण से मिटेगा।
इसलिए तो समस्त शास्त्रों ने, समस्त परंपराओं ने समर्पण की महिमा गायी है। समर्पण का अर्थ है ‘मैं नहीं सुलझा पाता हूं अपने को, और उलझाए चला जाता हूं’ तो अब मैं अपने को छोड़ता हूं और अपने से बाहर, अपने से विपरीत से सलाह मांगता हूं।गुरु के पास जाना अहंकार को छोड़े बिना नहीं हो सकता। और तुम अगर गुरु के पास भी जाते हो तो भी अहंकार से ही पूछ के जाते हो। जब वह कह देता है, हां ठीक, तभी तुम्हारी गाड़ी आगे बढ़ती है। तब तो तुम्हारा अहंकार तुम्हारे गुरु से भी बड़ा हो गया; तुम्हारे अहंकार की स्वीकृति से ही गुरु निर्मित हुआ।
ऐसे गुरु से भी सहारा न मिलेगा। विशेषज्ञ दुनिया में बढ़ते जाते हैं, लेकिन उलझन का अंत नहीं होता है। उपरोक्त जानकारी देते हुए श्रीसंघ अध्यक्ष इंदरमल टुकड़िया कार्यवाहक अध्यक्ष ओमप्रकाश श्रीमाल ने बताया कि जैन दिवाकर बालिका मंडल द्वारा नाटिका का सुंदर मंचन दिवाकर भवन पर किया ।तेले बेले की तपस्या के साथ ही ताल निवासी जिनशासनरत्न श्रीमान प्रकाश जी पिपलिया ने 74 उपवास की प्रत्याख्यान गुरुदेव से लिए। धर्म सभा का संचालन महामंत्री महावीर छाजेड़ ने किया आभार श्रीसंघ उपाध्यक्ष विनोद ओस्तवाल ने माना।