Share This Post

Featured News / Featured Slider / Khabar

उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन किया

उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन किया

कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज मंगलवार तारीख 18 अक्तूबर को प.पू. सुधा कवर जी मसा के सानिध्य में मृदुभाषी साधना श्रीजी मसा ने उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन किया! सुयशा श्रीजी मसा ने फ़रमाया महावीर जीवनी में आगे फरमाया के परमात्मा अपने नए अभियान पर निकल चुके थे! माता त्रिशला सोचने लगी कि वर्धमान को विवाह के बंधन में बांध देना चाहिए।

वर्धमान के वक्ष स्थल पर श्री वत्स का चिन्ह था! एक बार वे घुड़सवारी से थकने के बाद एक पेड़ के नीचे सो रहे थे तब एक राजकुमारी यशोदा उन्हें देखती है और उनके वक्ष स्थल पर श्रीवत्स चिन्ह को देखकर (भविष्यवाणी) अपने राजा पिता को बताती है एक बार एक भविष्यवक्ता ने यशोदा के लिए भविष्यवाणी की थी कि जिस के वक्षस्थल पर श्रीवत्स का चिह्न होगा वही यशोदा का पति बनेगा! श्रीवत्स चिन्ह देखते ही जो समझ जाते हैं कि यह तीर्थंकर बनने वाले हैं!

राजकुमारी उन्हीं से शादी करना चाहती है! तब वर्धमान को राजमहल में बुलाया जाता है और उनसे बातचीत करने के पश्चात उनके माता पिता यानि माता त्रिशला एवं राजा सिद्धार्थ के सामने प्रस्ताव रखतें हैं और सर्वसम्मति से उनका विवाह हो जाता है! एक पुत्री का जन्म होता है जिसके साथ वर्धमान ज्यादा समय बिताते हैं!

वर्धमान 6 महीने के अभियान पर बाहर भ्रमण जाना चाहते हैं और तभी उन्हें ज्ञात होता है कि उनके माता-पिता का अंत निकट है! तब वे यह निर्णय लेते हैं कि यह उनका दायित्व है कि उनके माता-पिता के अंत को सुखी और सफल बनायें। राजमहल के द्वार पर एक कुटिया बनाकर अपने माता पिता को श्वेत वस्त्र में सारे संसार को भूलकर समाधि लेने को और सिद्धि प्राप्त करने को कहते हैं!

वर्धमान माता पिता को यह भी समझाते हैं कि उनके मरणोपरांत भी वे वर्धमान की दीक्षा को देख पाएंगे! यह आश्वासन पाकर एक भव्य दर्शन के बाद दोनों देवलोक में देव के रूप में अवतरित हो जाते हैं! बड़े भाई नंदी वर्धन के आग्रह पर 2 साल तक श्रमण बनकर गृहस्थाश्रम में रहते है! अब राजकुमार वर्धमान को संयम लेकर तीर्थंकर बनाना था! नंदीवर्मन एवं सुपार्श्व का असीम प्यार अपनी पुत्री का स्नेह वात्सल्य एवं यशोदा की सभी यादें भी उन्हे संयम लेने से रोक नहीं पाते और वे संयम अंगीकार कर लेते हैं!

उस समय सभी देवों के साथ उनके माता-पिता राजा सिद्धार्थ और माता त्रिशला भी देव बन कर आते हैं! वर्तमान के लोच के बालों को शकेंद्र देव खुद आकर चांदी के थाल में समेटते हैं! लोच के बाद परमात्मा “नमो सिद्धाणं” बोलते हैं और उन्हें “मन पर्यव ज्ञान” की प्राप्ति हो जाती है! अब वे सबके मन की तरंगे को समझने में सक्षम हो जाते हैं! “अप्पाणं वोसिरामि” से दीक्षा संपन्न होती है और भगवान महावीर विहार करके नगर से बाहर एक वृक्ष के नीचे ध्यान में लीन हो जाते हैं! बड़े भाई द्वारा लगाया गया सुगंधित लेप से हजारों चींटियां आ जाती है और महावीर के पीड़ा का कारण बन जाती है! यहीं से श्रमण वर्धमान की यात्रा शुरू होती है!

क्रमशः

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar