Share This Post

Featured News / Featured Slider / ज्ञान वाणी

उच्च व्यक्तित्व के लिए भाषा विवेक और उन्नत विचारों को अपनाये

उच्च व्यक्तित्व के लिए भाषा विवेक और उन्नत विचारों को अपनाये

 गच्छाधिपति जिनमणिप्रभसूरिश्वरजी ने नदी के मीठे पानी की तरह बनने की दी प्रेरणा 

अठ्ठाई, उससे ऊपर, सिद्धि तप वालो का हुआ अभिनन्दन

Sagevaani.com @चेन्नई ; श्री मुनिसुव्रत जिनकुशल जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में श्री सुधर्मा वाटिका, गौतम किरण परिसर, वेपेरी में शासनोत्कर्ष वर्षावास के रविवारीय प्रवचन में धर्मपरिषद् को सम्बोधित करते हुए गच्छाधिपति आचार्य भगवंत जिनमणिप्रभसूरीश्वर म. ने कहा कि जो दूसरों प्यास बुझाता है, वह नदी है, तालाब है, कुआं है और पानी होने पर भी प्यास बुझा नहीं सकता वह सागर है, समुन्द्र है। जितना पानी समुन्द्र के पास है, उतना किसी के पास नहीं। नदियाँ पानी को मीठा बनाने का काम करती है, वही समुन्द्र मीठे पानी को भी खारा बना देता है। नदियां प्यास बुझाने का काम करती है, समुन्द्र प्यास जगाता है। प्रश्न हमारे जीवन पर भी हमारा जीवन समुन्द्र जैसा है या नदी जैसा। विशालता होते हुए भी समुन्द्र प्यास बुझा नहीं सकता। नदी छोटी होते हुए भी प्यास भी बुझाती है और जहां से गुजरती है, वहां हरियाली बिखेर जाती है।

◆ मीठे वचनों से मालूम होता परिचय

गुरुवर ने कहा कि हम भी चिन्तन करें कि हमारा व्यक्तित्व कैसा है, अस्तित्व कैसा है, जीवन कैसा है? किसी भी व्यक्तित्व का परिचय या उसका रेखाचित्र हम सबसे पहले उसकी भाषा से लगाते हैं, उसके शब्दों से हमें उसके अस्तित्व का पता चलता है। दिल और दिमाग कैसा है, उसकी कार्यक्षमता कैसी है, यह बाद में पता चलती है। उसकी मुस्कुराहट, उसके मीठे वचनों से ही पहले उसका परिचय मालूम होता है। हम भी, कभी भी चाहे घर, परिवार में हो, समाज में हो, उच्च शब्दोच्चार का प्रयोग करें। शब्द कोमल है, शब्द विनय से परिपूर्ण है, नम्र है, मिठास- माधुर्य से परिपूर्ण है या शब्दों में कडवाहट है, गालियां है, कषाय भाव है, उसका पता हमारे बोलने से लगता है। और हृदय का पता शब्दों से मालूम होता है। महाभारत के युद्ध में दुर्योधन का इंगों भी हो सकता है लेकिन उसमें मूल कारण द्रोपदी के वचन थे। हम भी देखे जब भी परिवार में, समाज में, व्यापार में अलगाव होता है, उसका कारण अधिकतर शब्दावली ही होती है। सामान्यतया तो हर कोई मीठास भरे वाक्यों का ही प्रयोग करता है। चिन्तन करें कि कषाय के समय, क्रोध के समय हमारे शब्द कैसे है। क्या हम समुन्द्र बनने की तैयारी कर रहे है या नदी की तरह मीठे पानी की तरह।

◆ हमारे अन्तर के विचार, भाव शुद्ध होने चाहिए

गुरुश्री ने आगे दूसरे बिन्दु के बारे में बताते हुए कहा कि हमारा चिन्तन कैसा है,  हमारी थिंकिंग कैसी है। कई बार हम जहां काम करते है और मालिक के कहने पर कुछ अलग शब्दों का उपयोग करते है कि इसका तो यही भाव है इत्यादि। लेकिन हमारे अन्तर के विचार, भाव शुद्ध होने चाहिए। किसी के कारण हमें कभी थोड़ा बहुत नुकसान हुआ, उसके प्रति हमारे कैसे विचार है। शत्रुता पूर्ण विचार होगें की उसको भी घाटा लगे। आपको मालूम पड़े कि किसी अन्य के कारण उसको नुकसान हुआ, तब आपके मन में प्रसन्नता पैदा होगी या पीड़ा? अगर प्रसन्नता पैदा होती है तो समझना कि वह व्यक्ति सागर बनने की तैयारी में है और उसके मन में स्वाभाविक पीड़ा होती है जबकि अन्तर यह भाव होने ही चाहिए कि नुकसान उसने नहीं मेरे कर्मों ने पहुचाया, वह तो निमित्त मात्र बना है। पुर्व भव में कोई इस प्रकार के कर्म किये हैं, यह व्यक्ति तो मात्र निमित्त बना है। भगवान महावीर की तरह यह चिन्तन करें कि यह तो मेरे कर्म काटने में सहयोगी बन रहा है तो इस चिन्तन से हम मान सकते है कि हमारा जीवन नदी की तरह बन रहा है।

◆ तपोभिन्दन समारोह

तपोभिन्दन में गच्छाधिपति ने कहा कि मुनि मलयप्रभजी (चेन्नई) ने नौ वर्ष की उम्र में उपधान तप किया था, ग्यारह वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की। अभी उन्हें माँ का और मातृभूमि का सान्निध्य मिला और ग्यारह उपवास की तप:चर्चा की। उन्नीस वर्ष की इस उम्र में पारण का भाव तो माक्षसमण का था। मुनि महर्षिप्रभ (फलोदी) ने अठाई तप, साध्वी अभिनन्दिताश्री (पादरू, गण सिवाना) ने सिद्धि तप, साध्वी नन्दिताश्री ने अठाई तप किया। उन सभी का अभिनन्दन करते है। चेन्नई क्षेत्र के विभिन्न क्षेत्रों में चातुर्मासरत पधारी सभी साध्वीयों को सुखसाता पुछी। मुनि प्रवर ने इस चातुर्मास में अठ्ठाई, उससे ऊपर मासखमण, सिद्धि तप करने वाले सभी तपस्वी श्रावक समाज को भी आध्यात्मिक शुभेच्छा दी।

ट्रस्ट मण्डल द्वारा अनुदानदाताओं के साथ सभी तपस्वीयों का अभिनन्दन किया।

समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar