चेन्नई. राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय व भुवनरत्न विजय ने पीताम्बर विजेता आचाय यतीन्द्रसूरि के 136 वें जन्मोत्सव प्रसंग पर गुरु गुणानुवाद करते हुए कहा कि धवलपुर में जन्मे रामरतन ने सद्गुरु को तलाशा तो अभिधान राजेन्द्र कोष निर्माता आचार्य राजेन्द्रसूरि जैसे सद्गुरु ने शिष्य को तराशा और उसे भी सद्गुरु बना दिया।
यदि शिष्य सच्चा हो तो उसे गुरु ढूंढने की आवश्यकता नहीं रहती, गुरु उसे खुद ही प्राप्त हो जाते हैं। गुरु हमारे गुणधारक और अवगुण निवारक होते हैं। संस्कृत और प्राकृत भाषा में,सवा लाख श्लोक प्रमाण,10,000 से भी अधिक पृष्ठों से युक्त, सात भागों में विभाजित अभिधान राजेन्द्र कोष की रचना 125 वर्ष पूर्व आचार्य राजेन्द्रसूरि ने अपने जीवन की 63 वर्षीय अवस्था में प्रारंभ किया,जो 14 वर्ष में पूर्ण हुआ। ऐसे विश्व कोष का संपादन व प्रकाशन का कार्य 17 वर्षों के प्रयास से आचार्य भूपेंद्रसूरि और आचार्य यतीन्द्रसूरि ने किया।
राजेन्द्र कोष ऐसा अद्भुत कोष है,जिसके बिना हर शोधार्थी का शोधकार्य अधूरा रह जाता है।आचार्य यतीन्द्रसूरि ने अ.भा. राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद की स्थापना की, जिसकी 300 से अधिक शाखाएं देश में कार्यरत है।यतीन्द्रसूरि बाल्यावस्था से ही साहसी, शूरवीर और अनुशासन प्रिय थे। 60 वर्षों से इनकी प्रेरणा से शाश्वत धर्म मासिक पत्रिका आज भी प्रकाशित हो रही है।
अनेकों साहित्य की रचना करने के साथ ही कई तीर्थों का जीर्णोद्धार भी उन्होंने करवाया और समाज के बिखराव को दूर किया।साध्वी व्याख्यान दे सकती है, इसलिए उन्होंने प्रमाण सहित साध्वीजी व्याख्यान आपी सके छे नामक पुस्तक गुजराती भाषा में लिखी। जिसके परिणाम स्वरूप आज साध्वियों को प्रवचन देने का अधिकार प्राप्त हुआ है।
जीवन में सम्पत्ति, स्वास्थ्य, सत्ता, पिता, पुत्र, भाई, मित्र या जीवनसाथी से भी ज्यादा जरुरत सद्गुरु की है।वे शिष्य को नयी दिशा देते हैं। साधना का मार्ग बताकर ज्ञान प्राप्ति कराते हैं। वो नश्वर शरीर में शाश्वत ईश्वर के दर्शन कराकर जीते जी मुक्ति दिलाते हैं।