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ईर्ष्या दूसरों को नहीं खुद को जलाती है : देवेंद्रसागरसूरि

ईर्ष्या दूसरों को नहीं खुद को जलाती है : देवेंद्रसागरसूरि

ईर्ष्या एक ऐसा शब्द है जो मानव के खुद के जीवन को तो तहस-नहस करता है औरों के जीवन में भी खलबली मचाता है। यदि आप किसी को सुख या खुशी नहीं दे सकते तो कम से कम दूसरों के सुख और खुशी देखकर जलिए मत। उपरोक्त बातें आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने सुमतिवल्लभ जैन संघ में प्रवचन देते हुए कही।  वे आगे बोले कि यदि आपको खुश नहीं होना है न सही मत होइए खुश, किन्तु किसी की खुशियों को देखकर अपने आपको ईर्ष्या की आग में ना जलाएं। अक्सर समाज में देखा जाता है कि कोई आगे बढ़ रहा है, किसी की उन्नति हो रही है,  नाम हो रहा है किसी का अच्छा हो रहा है तो अधिकांश लोग ऐसे देखने को मिलेंगे जो पहले यह सोचेंगे, कैसे आगे बढ़ते लोगों की राह का रोड़ा बना जाए।

उनको कैसे नीचा दिखाया जाए। कैसे समाज में उनकी मजाक बने और कैसे उनकी खुशियां छीनी जाए। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो किसी को आगे बढ़ता देख किसी की उन्नति होते देख आनंद  का अनुभव करते हैं या खुश होते हैं। यदि आप किसी की खुशियों से खुश  होकर उसे और आगे बढ़ने का प्रोत्साहन देंगे तो इससे दो फायदे होंगे एक तो समाज में आपकी छबी अच्छी बनेगी और आपको एक अंदरूनी खुशी का एहसास होगा और  एक सकारात्मक ऊर्जा का विकास अपने आप आपके अन्दर होगा। इसे इंसानी कमजोरी कह लीजिए या कुछ और पर सच यह है कि बहुत सारे दुखों का कारण हमारा अपना दुःख  ना होकर दूसरे की खुशी होती है। आप इससे ऊपर उठने की कोशिश कीजिए। आपको सिर्फ अपने आप को आगे बढ़ाते रहना है और व्यर्थ की तुलना के पचड़े में नहीं पड़ना है। तुलना नहीं करनी है।

मगर अफ़सोस की बात है आज के समाज की कि लोग किसी के दुःख को देखकर तो बहुत दुखी होते हैं सहानुभूति जताते हैं लेकिन किसी की खुशी को देखकर खुश नहीं होते। किसी की उन्नति से किसी के गुणों से जलते हैं और दुखी होते हैं और पुरा प्रयास करते हैं कि सामने वाले का बुरा हो। हम सभी को इससे बचना चाहिए। अंत में आचार्य श्री ने कहा कि आप ईर्ष्या करने के बजाय सामने वाले इंसान के गुणों को अपनाएं और जीवन में उनसे कुछ सीखें और लाभ लें  ताकि आपका जीवन भी खुशहाल हो। ना कि सिर्फ और सिर्फ जलन में आपकी पूरी जिंदगी ऐसे ही व्यर्थ चली जाए।

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