जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने कहा कि भगवान की स्तुति करने से पापों का नाश होता है क्योंकि स्तुति से मन के विकार नष्ट होते है भावों मे शुद्धिकरण होता है! मानव मन सांसारिक कार्यों मे जब रहता है तब राग द्वेष आए बिना नहीं रह पाते क्योंकि कार्य की सम्पनता मे राग है कार्य की सम्पन्नता मे राग है कार्य के अवरोध होने पर द्वेष की सम्भावना रहती है! भक्ति मे सांसारिक स्वार्थ भावनाएं समाप्त हो जाती है! जीवन निर्माण की शुभभावनाये, आत्म भाव का जागरण होता है अत : वहां पुण्योपार्जन होता रहता है! आचार्य मानतुंग जी कह रहे है हे प्रभो!
आपका तो मात्र नाम स्मरण ही हमारे पापों को नष्ट करने मे सक्षम है! आपके जीवन के गुणनुवाद से हमारे पाप नष्ट होते है। आपका जीवन गुणों का सागर है आपने मानव मात्र के कल्याण के लिए जो मार्ग बतलाया है जिसे अपना कर अनेकानेक जीवों ने मोक्ष प्राप्त किया है। आपके बतलाए गए उपदेश अहिंसा सत्य क्षमा शाकाहार आदि को जीवन मे धारण करने से समस्त जीवों को शान्ति का अनुभव होता है!
मुनि जी ने वर्तमान समय की दुर्दशा पर चिन्ता जाहिर करते हुए कहा आज मानव मानव से भयभीत है! पता नहीं कौन कब किसका संहार हिंसा कर दे किसके पास कौन हिंसक कारी अस्त्र शस्त्र है! निर्दोषों का खून बहता जा रहा है! बड़े लोगों के अपने स्वार्थ के कारण आम जनता मारी जा रही है! इसके पीछे दया की भावना का समाप्त होना, पुण्य परोपकार के भावों मे कमी का होना मुख्य कारण है!
सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा भक्तामर जी स्तोत्र के माध्यम से धर्म के विविध स्वरूपों का वर्णन किया गया जीवन मे शान्ति बाहर के पदार्थो से नहीं अपितु मानसिक इच्छाओं के परिणाम से ही सम्भव है! आग से पेट्रोल से कभी आग शान्त नहीं हो सकती!महामंत्री उमेश जैन ने स्वागत व सूचनाएं प्रदान की।