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इंद्रिय सुख की अपेक्षा आत्मिक सुख की ओर बढ़े : आचार्यश्री महाश्रमण

इंद्रिय सुख की अपेक्षा आत्मिक सुख की ओर बढ़े : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिशास्ता महातपस्वी युग प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमणजी ने महाश्रमण समवशरण से अपने पावन पाथेय में फरमाया कि सुख दो प्रकार के होते हैं। पहला सुख मानसिक और दूसरा आत्मिक सुख होता है।

व्यक्ति दोनों सुखों में अनुकूलता का अनुभव करते हैं परंतु दोनों सुखों की प्रकृति में बहुत अंतर होता है। इंद्रियजनित मानसिक सुख अंशकालिक और बाधायुक्त होता है। इसमें बीच-बीच में रुकावट आती रहती है। आत्मिक सुख निर्बाध और अनन्तकालिक होता है।

हमारा मन इंद्रियों से जुड़ा होता है और जब तक मन को अच्छा लगे तब तक इन्द्रियजनित सुख अच्छा लगता है परंतु इन्द्रियों के विपरीत जब बात होती है तो इसमें दुख का अनुभव होने लग जाता है। व्यक्ति को दोनों सुखों में चुनाव करना हो तो आत्मिक सुख को चुनना चाहिए क्योंकि इंद्रियजनित शुभ क्षणिक होते हैं और उसके बाद उसमें दुख का अनुभव होने लग जाता है।

आत्मिक सुख निरंतर रहता है जैसे-जैसे इंद्रिय सुख से हम दूर होंगे वैसे-वैसे आत्मिक सुख की ओर बढ़ते रहेंगे। विषयों से दूर रहने पर आत्मिक सुख की ओर बढ़ना सुगम हो जाता है। साधु साध्वी इन्द्रियजनित सुख छोड़कर मोक्ष के मार्ग की ओर बढ़ने के लिए साधना का पथ चुनते हैं।

उसी प्रकार श्रावकों को भी इन्द्रिय सुख से ऊपर उठकर आत्मिक सुख की ओर बढ़ना चाहिए। आत्मिक सुख के बजाय इंद्रिय सुख को चुनना वैसे ही हो जाता है जैसे बड़ी वस्तु को छोड़कर कुछ वस्तु को चुनना। व्यक्ति को दीर्घ दृष्टि और परम दृष्टि से चिंतन कर आत्मिक सुख की ओर बढ़ना चाहिए।

आगम का स्वाध्याय आत्मिक सुख का पथ दिखाने वाला होता है। साधु को शुक्ल लेश्या में रहकर साधना करनी चाहिए और पुरुषार्थ कर निर्जरा भी करनी चाहिए। साधुओं को भौतिक साधन से दूर रहकर साधना की ओर बढ़ने की प्रेरणा दी और उन्हें सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान और समित चरित्र के माध्यम से साधना पथ पर चलने के लिए उत्प्रेरित किया।

आचार्य प्रवर ने साधु साध्वियों को प्रेरणा दी की साधु साधन का प्रयोग न करके साधना की मार्ग में आगे बढ़ने का लक्ष्य रखें। साधन भी हो तो सम्यक ज्ञान दर्शन चरित्र का साधन रहे। आचार्य प्रवर ने चतुर्दशी के उपलक्ष में हाजिरी का वाचन करवाया।

साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभाजी ने पावन पाथेय में फरमाया कि हाजरी में जिन मर्यादाओं का वाचन होता है उनके प्रति सभी सजग रहें और आचार्य प्रवर इस दिशा में निरंतर हमें प्रेरणा पाथेय प्रदान कर रहे हैं। प्रवचन में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री श्याम जाजू ने आचार्य प्रवर के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। प्रवचन कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार जी ने किया।

शांतिदूत के पावन सानिध्य में आज मुस्लिम समाज के बीच अहिंसा यात्रा सद्भावना संगोष्ठी का आयोजन हुआ। जिसमें मुख्य रूप से मौलाना अस्शा अजगर अली राज्वीउल खादरी (खतीबो इमाम जामिया मस्जिद – रामनगर), हजरत सैयद जैनुल आबीदीन तुराबी चिश्तीउल खादरी (तुराबिया के प्रमुख), हजरत खलीफा गुलाम मोहम्मद अलखादरी अल जिलानी (खान खा , आलियातुल खादरिया अल जिलानी), डाॅ- सैयद सूफी आरिफ हुसैन शा वारिसि (खान खा , वारिसिया), हजरत अस्शा मोहम्मद ताहा अशरफी (सज्जा देनसि खान खा , अशरफिया), सूफी मोहम्मद अरफात आलम खादरी (फाउंडर  यूनिवर्सल ब्रदर हुड) ने अपने विचार रखे। उक्त कार्यक्रम में श्री फारुखजी ने मुस्लिम समाज के धर्म गुरुओं का परिचय प्रस्तुत किया, एवं शमशीर अहमद आलियास गाजीपुर ने आचार्य श्री महाश्रमणजी की अहिंसा यात्रा के सम्बंध में एक कविता प्रस्तुत की। आचार्यवर ने आगे अहिंसा यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति के लिए प्रेरित किया। उक्त कार्यक्रम में 300 से अधिक लोग उपस्थित थे।

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