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ज्ञान वाणी

इंद्रियों का निग्रह करना सबसे कठिन साधना: जयधुरंधर मुनि

कीलपॉक स्थित ऋषभ भवन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा साधक के लिए अपनी इंद्रियों पर सम्यक नियंत्रण रखना नितांत आवश्यक है। इंद्रिय विषयों में आसक्त बन इनमें प्रवृत्ति करना आत्म गुणों के लिए घातक सिद्ध होता है।

जीव का वर्ण, गंध, शब्द, रस, स्पर्श आदि विषयों के प्रति आकर्षण या विकर्षण भाव, राग या द्वेष भाव, आसक्ति या ईष्र्या भाव विकारों को जन्म देता है और यह विकार आत्मा के स्वभाव को विकृत कर देते है और जहां विकृति है वहां विषाद ही विषाद है।

व्यक्ति को इंद्रियों का गुलाम ना बनकर उस पर लगाम लगाते हुए निग्रहित करने का प्रयास करना चाहिए। इंद्रियों का निग्रह करना वास्तव में सबसे दुष्कर एवं कठिन साधना है। इंद्रियों के विषय में लोलुपता भयंकर कर्म बंध का कारण बनती है।

उत्तम से उत्तम खाद्य पदार्थ भी गले के नीचे उतरने के बाद मल- मूत्र में परिवर्तित हो जाता है। भोजन जैसा भी हो सरस या नीरस, उसे समभाव से ग्रहण कर लेना चाहिए। मुनिवृंद के सानिध्य में 5 से 7 अप्रैल को जयमल जैन पौषधशाला में स्वाध्याय शिविर का आयोजन होगा।

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