चेन्नई,
साहुकारपेट स्थित जैन आराधना भवन में विराजित गणिवर्य पदमचंद्र सागर भगवान महावीर ने कहा कुछ जीव इन्द्रिय सहित जन्म लेते हैं तो कुछ जीव इन्द्रिय रहित। इन्द्रिय दो प्रकार के होते हैं- द्रव्य और भाव। द्रव्य इन्द्रिय के दो प्रकार हैं, निवृत्ति (आकृति) और उपकरण। बाहर से जो इन्द्रिय दिखती है उसे निवृत्ति कहा जाता है और भीतर में जो यंत्र है जिससे बाहरी इन्द्रिय संचालित होती है, उसे उपकरण कहते हैं। भाव इन्द्रिय यानी जिस शक्ति से इन्द्रियों का संचालन होता है। शक्ति के दो प्रकार है- संग्रह और उपयोग। जब द्रव्य और भाव जुड़ते हैं तब ही इन्द्रियां कार्य करती हैं। उन्होंने बताया कि तेजस और कार्मण शरीर अनादिकाल से आत्मा के साथ है। अगर अलग हो जाये तो मोक्ष हो जाती है। आहार तीन प्रकार के होते है-ओजाहार, लोमाहार (जो गर्भ में ही लिया जाता है) और कवलाहार, जो गर्भ से बाहर आने के बाद लिया जाता है। महावीर ने कहा माता जो रसादि आहार लेती है, उसका एक छोटा भाग जीव ग्रहण करता है। जीव अपने पूरे शरीर से आहार ग्रहण करता है। गर्भस्थ जीव से मल नहीं निकलता, पूरा आहार खप जाता है। गर्भस्थ जीव और माता, दोनों को नाभि नाल होती है। माता की रसाहरणी नाल और शिशु की रसाहरणी नाल जब जुड़ती है, तो जीव आहार ग्रहण करता है। मुंह से बिल्कुल आहार नहीं लेता।