ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा शरीर का आधार आहार है जिसके बिना शरीर का निर्वाह नहीं हो सकता। आहार हितकारी और परिमित होना चाहिए। भले ही खाने के लिए बहुत सी वस्तुएं हैं लेकिन पेट को डस्टबिन नहीं बनाएं।
साध्वी ने कहा स्वाद के लिए खाना अज्ञानता एवं स्वास्थ्य के लिए खाना समझदारी व साधना के लिए खाना योग है। आहार तीन प्रकार का होता है-सात्विक आहार जो मानसिक भावना को पवित्र करता है। राजसिक आहार जो जीवन में विलासिता पैदा करता है तथा तामसिक आहार विकार उत्पन्न करता है।
आहार और विचार दोनों जुड़वां भाई हैं। ये दोनों अलग नहीं रह सकते। जैसा आहार होगा वैसे ही विचार पैदा होंगे। दिन में एक खाना आहार, दो बार खाना भोजन और बार-बार खाना, खाना भी नहीं। एक बार खाने वाला योगी, दो बार खाने वाला भोगी एवं बार-बार खाने वाला रोगी होता है।
साध्वी अपूर्वाश्री ने कहा क्रोध जीव को नरकगामी बना देता है। क्रोध एक नुकसान अनेक। यह दूसरे और स्वयं दोनों को नुकसान देता है।