भगवान महावीर ने कहा है- “तवसा धुणई पुराणं पावगं” तपस्या पुराणे कर्मों को धून डालती है। तप वह उर्जाप्लॉट है जो आत्मा की सोई शक्ति को एक्टिवेट करता है । तप एक मधुवन है जो इस मधुवन में रमण करता है उसका जीवन महक उठता है। आत्मा से परमात्मा तक पहुंचाने वाला तप एक सेतू है। शौर्यवान व्यक्ति ही तप यज्ञ में अपनी आहूति दे सकता है। चातुर्मास काल में कर्म की श्रृंखला का विलय करने तप -जप का आलंबन लिया जाता है पर संघाति कर्मों का नाश करने के लिए सामूहिक तप एवं जप आवश्यक है। गुरुदेव की महती कृपा से तप की जगमग ज्योति से मदुरै जगमगा रहा है ।
यहां पर पहले सतरंगी तप और अब मदुरै वासियों के उत्साह से पचरंगी तप सानंद संपन्न हो रहा है । मुनिश्री ने आगे कहा – तप वह मंगल कलश है जिसका अमृत पीने से मानव अमरत्व को प्राप्त करता है । मदुरै में जो तप की सरिता प्रवाहित हुई है वह अविरल गति से बढ़ती रहे और उस सरिता में स्नान कर हम आत्मोत्कर्ष बढ़ाते रहें।
सहयोगी संत मुनि भरत कुमार जी ने कहा- पचरंगी तप विशेष है क्योंकि इसमें एक साथ 25 लोगो का मन मिले तो ही ये संभव है । यह सामूहिक पचरंगी तप मदुरै के इतिहास में ऐतिहासिक रहेगा । मुनि श्री की प्रेरणा से ही आसोज महीने में पचरंगी का रंग चा रहा है। बाल संत जयदीप कुमार जी ने सुमधुर गीतिका का संगान किया।
कार्यक्रम में कोलकाता व शिवाकाशी के लोग उपस्थित रहे, शिवाकाशी की ओर से महिला मंडल एवं मदन जी डागा ने गीत एवं वक्तत्वय द्वारा मुनि श्री को शिवाकाशी पधारने की पुरजोर अर्ज की। सभा मंत्री धीरज दुगड़ ने आगंतुको स्वागत किया और आभार ज्ञापन किया ।