हमारे भाईन्दर में विराजीत उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना ज गुरुणी मैया आदि ठाणा 7 साता पूर्वक विराजमान है। वह रोज हमें प्रवचन के माध्यम से नित नयी वाणी सुनाते हैं वह इस प्रकार हैं।
जिसे तो धरती पर कई जो जमती है उसे निगोद कहते हैं जैसे अपने किचन में आलू को देखा है।
एक आलू के अंदर एक सुई जितना लोग कितनी पतली होती है उससे भी अनंत जीव होते हैं।
आलू के अंदर कभी मन करता है कि आलू की सब्जी खाओ खाओ कि नहीं खाओ आलू के अंदर जीव से बचने के लिए आलू का त्याग करना चाहिए।
एक समुद्र में तो एक बार अगर पाव लगा दिया उनका भी इतना पाप लगता है ।
निर्जरा के बारे में बताएं एवं और कहा कि कोईभी समभाव से सहन करें तो निर्जरा कम होती हैं।
प्रवचन के माध्यम से हमें रोज में अपनी वाणी सुनाते हैं।
एवं करुणा का चोथा दिव्य भाव हृदय यानी जो हमारे काम आया उसके प्रति धन्यवाद से भरे रहना आज मनुष्य में कृतज्ञता कम और कृतध्नता ज्यादा है।
आशा सबसे बड़ा कृज और अगर किसी का हम पर यह कार्य तो हमें उसे अपने इस कर्ज को चुकाने के लिए हर हालत में तैयार रहना चाहिए।
बाबू को सुख और शांति बनाने के लिए जीवन को खुशहाल से भरने के लिए अपने व्यवहार और रिश्ते नातों को मधुर बनाने के लिए यह चार व्ययभाव हमेशा स्मरण करे।
यह वही आधार सूत्र है जितने भी महापुरुष हैं बगैर प्रमोद भाव के जीवन में दुख का दरिया है यही जीवन में।
जय जिनेंद्र जय महावीर कांता सिसोदिया भायंदर🙏🙏