श्री सुमति वल्लभ नोर्थटाउन श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ में धर्म प्रवचन देते हुए आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने कहा कि आलस्य हमारे जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है जो हमें अंदर ही अंदर मारता है । हर आलसी मनुष्य चाहता है कि उसको अन्य लोगों के मुकाबले ज्यादा सफलता मिले परन्तु आलसी मनुष्य को सफलता कभी भी नही मिलती है । इसका कारण यह है कि आलसी लोग हमेशा आलस्य भरी जिंदगी जीते हैं जिसके कारण वह दूसरे लोगों से पीछे रहते हैं और किसी महापुरुष ने भी कहा है कि पीछे रहने वाले लोग उतना ही ले पाते हैं जितना उनसे आगे रहने वाले लोग उनके लिए छोड़ जाते हैं ।
इस पंक्ति में आगे रहने वाले लोगों का मतलब है वो लोग जो आलस्य से कोसौं दूर रहते हैं और जो लोग मेहनत और परिश्रम करके अपनी मंज़िल तक पहुँचने का मार्ग स्वयं बनाते हैं ।
आलसी होने के कारण मनुष्य को किसी काम में रुचि नही रहती , सवेरे उठा नही जाता , हमेशा सोने का मन करता है , जिसके कारण वह अपना बहुमूल्य समय नष्ट कर देता है । मुझे तो ऐसा लगता है कि अगर किसी कारण किसी आलसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाय तो उसकी आत्मा को स्वर्ग ले जाने के लिए भी एक वाहन भेजना पड़ेगा । नीति विशेषज्ञ कहते हैं कि जिस तरह अनपढ़ को पैसा नहीं मिलता और गरीब को दोस्त नहीं मिलते उसी तरह आलसी को शिक्षा नहीं मिलती। किसी भी प्रकार के गुण या ज्ञान को प्राप्त करने के लिए आलस्य को त्याग कर कठिन परिश्रम और तपस्या करनी पड़ती है।आलस्य के कारण मनुष्य प्राय: अपनी विश्वसनीयता खो देता है क्योंकि आलस्य के कारण वह अपने वचनों को समय पर पूरा नहीं कर पाता।
लोग उस पर भरोसा करना बंद कर देते हैं क्योंकि उसकी कथनी और करनी एक जैसी नहीं होती। आलस्य दुर्गुणों को जन्म देता है जो व्यक्ति के सौभाग्य को अपशकुन में बदल देता है। यदि आप अपने हाथ, पैर और दिमाग का उपयोग नहीं करते हैं और आलस्य में लिप्त रहते हैं, तो आप निश्चित रूप से उस जीवन का अपमान कर रहे हैं जो प्रकृति ने आपको दिया है। अंत में आचार्य श्री ने कहा कि अगर कोई आलसी व्यक्ति इस आलस के कुए से बाहर निकलना चाहता है तो उसको अपने अंदर अपने लक्ष्य के प्रति आग जलानी पड़ेगी और मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि मेहनती व्यक्ति को उसके कर्मों का फल भविष्य में मिलता है लेकिन आलसी व्यक्ति को उसके कर्मों का फल कभी नही मिलता ।