चेन्नई. कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि स्वाभिमानी और अच्छा संस्कारी मेहमान बिना बुलाए किसी के घर नहीं जाता। संस्कारी कुत्ता बिना दिए कुछ नहीं खाता। अच्छे विचार, हितकारी विचार, सद्विचार स्वाभिमानी संस्कारी इंसान के समान है प्यार से, विनय से बुलाओगे तो ही आएगा।
चोर और बदमाश घर में घुसने के लिए आमंत्रण का इंतजार नहीं करता, मौका मिलते ही घर में घुस जाता है। इसी प्रकार गंदे विचार, बुरे विचार चोर के समान है, हर समय दिल-दिमाग में घुसे रहते हैं। मक्खी मच्छर की तरह मंडराते रहते हैं।
इनसे बचना और सावधान रहना ही साधक का लक्षण है। आदमी क्या सोचता है, आदमी की भूल क्या है? अमीरी धन दौलत सुख का साधन है और गरीबी बदनसीबी दुख का कारण है। यही सबसे बड़ी भूल है।
अमीरी सुख नहीं देती बल्कि चिंता देती है अमीरी सुख भोगने की कला नहीं सिखाती, बिगडऩे के असंख्य मार्ग खोल देती है। अमीरी मन को शांत नहीं बल्कि विकृत और अशांत करती है।
गरीबी अभिशाप नहीं वरदान है। परमात्मा के पास लेकर जाती है। भक्ति कराती है, झुकना सिखाती है और विनयवान बनाती है। पैसे से परमात्मा नहीं खरीदा जा सकता।
धर्म से भी बहुत कुछ मिलता है, पुण्य, पैसा, इज्जत, सम्मान, गुण वृद्धि, समता, आनंद और प्रसन्नता ये सभी धर्मवृक्ष के फल फूल है। पैसे से ज्यादा ताकत धर्म की है। रावण के पास धन था फिर भी हारा। राम वनवासी थे फिर भी विजयी हुए। महावीर का निर्वाण, धर्म साधना का पुरस्कार है।