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आपके जीवन का रिमोट आपके हाथ में है, क्या ग्रहण करना है, आप तय करें : प्रवीण ऋषि

आपके जीवन का रिमोट आपके हाथ में है, क्या ग्रहण करना है, आप तय करें : प्रवीण ऋषि

प्रतीक्षा ने प्रशस्त किया संयम का पथ, बनेंगीं साध्वी…

7 अक्टूबर को लालगंगा पटवा भवन में आज्ञा पत्र समारोह

Sagevaani.com @रायपुर (वी। संयम के मार्ग पर चलने की कोई उम्र नहीं, कोई सीमा नहीं है। जब भाव जग जाते हैं, तो मार्ग स्वतः प्रशस्त हो जाता है। ऐसा ही रायपुर की प्रतीक्षा भंडारी के साथ हुआ। संतों की सेवा में, उनकी सद्गति में रहते भाव जगे, दीक्षा का मन बना और परिवार वालों ने अपना आशीर्वाद प्रदान कर दिया। 7 अक्टूबर को लालगंगा पटवा भवन में मुमुक्षु प्रतीक्षा भंडारी के परिजन अपने स्नेहीजनों के साथ अनुमति पत्र प्रदान करेंगे। रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताय कि वैशाली भंडारी एवं सुशील कुमार भंडारी की सुपुत्री व अष्टमंगल की ट्रेनर प्रतीक्षा भंडारी ने तीर्थेश ऋषि की गुरुनि मैया साध्वी सुनंदजी मासा के चरणों में सेवा करते हुए दीक्षा लेने का भाव प्रकट किया था। उनके परिजनों ने उन्हें दीक्षा के लिए आशीर्वाद प्रदान कर दिया है। शनिवार को परिवार के सदस्य अपने प्रियजनों के साथ लालगंगा पटवा भवन पहुंचेंगे और प्रतीक्षा भंडारी की दीक्षा का आज्ञा पत्र प्रस्तुत करेंगे।

शुक्रवार को लेश्या की प्रवचन माला में उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि सभी 6 लेश्याओं की तरंगें हर जगह हैं। हमें कौन सी तरंग लेनी है, ये हम पर निर्भर करता है। हम चाहें तो सकारात्मक तरंग ग्रहण कर सकते हैं, या फिर नकारात्मक। ग्रहण तो करना ही है। 9 तत्वों में सबसे महत्वपूर्ण है आश्रव तत्व (ग्रहण करना)। जो कुछ आज हमारे पास है, वो इसलिए है क्योंकि हमने उसे ग्रहण किया है। जिसे हमने ग्रहण नहीं किया है, वो हमारे पास नहीं है। हम जाने-अनजाने में लेश्या ग्रहण करते हैं। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

शुक्रवार को लेश्या की प्रवचन माला में उपाध्याय प्रवर ने धर्मसभा को कैसे लेश्या ग्रहण करना, दूसरों को देना और कैसे दूसरों की लेश्या से बचना बता रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारे जीवन का रिमोट हमारे हाथ में है। संसार में सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा दोनों ही हैं। हम किस ऊर्जा को ग्रहण करते हैं, ये हम पर निर्भर करता है। आपने कृष्ण लेश्या को ग्रहण किया तो आपके पास कृष्ण लेश्या रहेगी, अगर अपने ग्रहण नहीं किया तो नहीं रहेगी। लेश्या कोई आत्मा का स्वरुप नहीं है, ये आश्रव है परिणाम है।

आपको सबसे पहले ये तय करना है कि ग्रहण क्या करना है। जब तक आत्मा संसार में है, तब तक उसे ग्रहण करना ही है। मनुष्य को बाहर की ऊर्जा लेनी ही है, सांस आपको लेनी ही है, बिना सांस लिए बिना आप रह नहीं सकते। आपको यह तय करना है कि आपको बगीचे में सांस लेनी है कि गंदे नाले की। 6 लेश्या के परमाणु हर जगह हैं। ऐसी कोई जगह नहीं जहां कृष्ण लेश्या के परमाणु न हों। और ऐसी कोई जगह नहीं जहां शुक्ल लेश्या के परमाणु न हों। यह आप पर निर्भर करता है कि आप कौन सी लेश्या ग्रहण करते हैं। जैसे टीवी में आपको वही चैनल दिखेगा जिसे आप लगाते हैं। बाकी चैनल भी हैं, लेकिन वही दिखेगा जिसे आप लगाएंगे। चैनल कौन सा देखा है? यहां कृष्ण, नील, कपोत, तेजो, पद्म और शुक्ल लेश्या भी है। आपको तय करना है कि आप कौन से लेश्या ग्रहण करेंगे। जब तक आप इस संसार में हैं आप ग्रहण करते रहेंगे। सभी स्थान में नकारात्मक और सकारात्मक ऊर्जा रहती है, आपको यह तय करना है कि आप कौन सी ऊर्जा ग्रहण करते हैं।

उपाध्याय प्रवर ने कहा हम नितांत पुण्यशाली भी नहीं हैं, और नितांत पापी भी नहीं है। संसार में ऐसा कोई भी जीव नहीं है जिसके अंदर पाप और पुण्य का बीज न हो। हमारे अंदर दोनों बीज रहते हैं। यह हमें तय करना है कि हम कौन से बीज का सिंचन करें। हमारे अंदर का बीज तय करता करता है कि क्या ग्रहण करना है। जिसने तय कर लिया कि किस बीज को पानी देना है, वह साधक बन गया। जो नहीं कर पाया वो भटक गया। कौन सा बीज सक्रिय करना है? हमें अपने शुभ के बीज को जगाना है और अशुभ के बीजा का दहन करना है।

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