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आना भी मुबारक था, जाना भी मुबारक है

आना भी मुबारक था, जाना भी मुबारक है

आना भी मुबारक था, जाना भी मुबारक है! था जिंदगी का यही मकसद हर चीज मुबारक था! महासाध्वी डॉ. राज श्री जी म.सा. आकुर्डी – निगडी- प्राधिकरण श्री संघ का स्वर्णिम एवं ऐतिहासिक चातुर्मास समाप्त कर डॉ. राज श्री जी , डॉ. मेघाश्री जी साध्वी समिक्षा श्री जी, साध्वी जिनाज्ञा श्री जी की विहार यात्रा प्रारंभ हुई!

संत मधुकर होते है! जहॉं मधुकर को मधुर सुरभि और रस मिलता है वहाँ पहुँच जाते है! संघ रुपी पुष्प है इसमें भक्ति और श्रध्दा का रस लेने संत भ्रमर आते है! रस लेकर उड़ भी जाते है! जैसे हवा पुष्पके गंध को दुर दुर तक फैलाती है! वैसे संत हवा भी संघ पुष्प को सदगुण, समभाव, स्नेह,आत्मीय दुलार को दुर दुर फैलायेंगे!

हम साध्वीयोंका किसीके साँथ मतभेद रहा होगा किंतु मनभेद नही! फिर भी हिसाब किताब को साफ़ कर देते है – “ क्षमायाचना” से! हंस पानी में दुध मिला हो तो पानी को छोड़ देता है और दुध को पी लेता है ! वैसे आप भी हँस के समान हो ! हमारे सदगुणोंको आप हंस बनकर चुन लेना और दुर्गुण नज़र आये तो पानी समज छोड़ देना! एक दिन वर्षावास के लिये आये थे ! अब जा रहे है! संत और सुरज कभी एक जगह रुकते नहीं वे जहॉं होते है वहाँ अंधकार मिटाते है ! संत जहॉं जाते है वहा सोना हो जाता है और जहॉंसे निकलते वहाँ सुना हो जाता है!

आकुर्डी संघ तो हमारा मायका है! आपने और अध्यक्ष जी ने एक बहन बेटी समान हमारा ख़्याल रखा! अध्यंक्ष सुभाषजी ललवाणी ने अपने मीठी आवाज से श्री संघ को एक सुत्र में पिरोके रखा ! हमारे प्रति आत्मीय स्नेह बरताया उसे कभी भुल नहीं सकते!

ख़ुश रहो आकुर्डी वालों इस नगरी को हम छोड़ चले! ज्यों रिश्ते नाते जोड़े थे वो हम साथ ले चले!अब और कहीं लगेगा डेरा , यह जग जोगीवाला डेरा ! सब यहीं छोड़ चले मेला, केवल अपना मुख मोड चले ! यह सुंदर बिदाई गीत पेश किया! विहार का प्रथम पड़ाव रोहन जी रोहीत जी फिरोदिया जी के निवास से संघाध्यक्ष सुभाष जी ललवाणी के निवास द्वितीय चरण में पहुँचे! अनेक विहार सेवक, संघ के विश्वस्त एवं धर्म प्रेमीयोने विहार सेवा, दर्शन, प्रवचन का लाभ लिया! कांता जी, संकेत प्रियंका ललवाणी परिवारने महासतीयोंका एवं भाविकोंका स्वागत किया !

सुभाष ललवाणी परिवारद्वारा उपस्थित सन्माननीय महिलाओंके करकमलोद्वारा चारो महासतीयोंको आदर की चादर प्रदान की गयी! डॉ. राज श्री जी एवं डॉ. मेघाश्री जी पुर्वाध्यक्ष एवं ज्येष्ठ उद्योजक जयकुमारजी के निवासपर पहुँच उनके सहेद की साता पुछने एवं आशिर्वाद देने पधारे!

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