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आनंद के देवता थे आचार्य आनंद ऋषि: पंकज मुनि

आनंद के देवता थे आचार्य आनंद ऋषि: पंकज मुनि

चेन्नई. जहां प्रेम होता है, वहां भगवान का वास होता है और जहां द्वेष होता है वहां शैतान का वास होता। प्रेम में वो ताकत है, जो बिगड़े हुए काम भी संवार देता है और फूट के द्वारा बनते काम भी बिगड़ जाते हैं। यह विचार ओजस्वी प्रवचनकार डॉ. वरुण मुनि ने साहुकारपेट के जैन भवन में उपस्थित विशाल जन मेदिनी को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा आचार्य आनंद ऋषि जी म. आनंद के देवता थे। वे समाज को प्रेम व एकता का संदेश प्रदान करते थे। उन्होंने 18 भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया था व अनेक ग्रंथों की रचना भी की। जो कोई उनके दर्शन को आता था, उसे भी आनंद की प्राप्ति होती थी। आचार्य श्री का श्रमण संघ के गठन में अहम योगदान रहा। वे सर्व धर्म समन्वय के जीवंत प्रतिमान थे। राग-द्वेष कषायों से उनका जीवन कोसों दूर था। हम उनके तप-त्याग व साधना मयी जीवन को नमन करते हैं। आचार्य श्री की जन्म जयंति पर श्रद्धालु भाई-बहनों ने सैकड़ों की संख्या में आयंबिल तप की आराधना की। श्रीसंघ की ओर से अतिथियों का बहुमान किया गया। छल्लाणी परिवार की ओर से आयंबिल तपस्या करने वाले तपस्वियों का पारणे का लाभ लिया गया तथा सामायिक करने वाले बच्चों के लिए आकर्षक प्रभावना भी वितरित की गई।

 

इस अवसर पर महावीर इन्टरनेशनल संस्थान की जन कल्याणकारी सेवाओं का सम्मान किया गया। श्री गुरु कृपा सेवा समिति के पदाधिकारी एवं सदस्यों ने सत्संग समारोह में पधारने हेतु गुरु भगवंत को भावभरी विनती रखी। सुनील कुमार की ओर से अमर प्रार्थना का लोकार्पण किया गया। धर्मसभा में नन्हे मुन्ने सैंकड़ों बच्चों ने सामूहिक सामायिक व्रत की आराधना कर सत्संग सभा की शोभा बढ़ाई। प्रवचन सभा में करुणा इन्टरनेशनल क्लब के पदाधिकारी व अध्यक्ष पधारे। श्रमण संघीय उप प्रवर्तक पंकज मुनि ने तपस्वियों को पचखान प्रदान किए। रुपेश मुनि ने गुरुभक्ति गीत प्रस्तुत किया। प्रवचन विषय पर आधारित प्रश्नोत्तर में सही उत्तर प्रदान करने वालों को श्रीसंघ की ओर से प्रभावना प्रदान की गई।

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