सौभाग्य प्रकाश संयम सवर्णोत्सव चातुर्मास खाचरोद
विद्वद्वर्या डॉ. श्री ललित प्रभाजी म.सा. जी गुरुदेव श्री सोभग्यमल जी महारासा के लिये फरमाते है कि..
*आराध्य देव! सुगुणं तव चिन्तयामि ।* *पादौ त्वदीय मम चित्त समर्पयामि ।* *अध्यात्मवृत्ति सहितं ललितं प्रधानम् ।* *सौभाग्य सद्गुरुवरं शिवदं स्मरामि ॥७॥*
पुज्य प्रवर्तक की प्रकाश मुनि जी मासा बताते है कि … दुनिया में सौंदर्य कहाँ है, अन्दर हे, आध्यात्म वृत्ति जिसमें है सबसे बड़ा सौन्दर्य है, आध्यात्म वृत्ति से जीवन होता है उनकी ही सौन्दर्य शाली जीवन होता है। आदमी हंस मुख हो, व्यवहार सुन्दर, बोलता मीठा हो । उपर का रुप आध्यात्म को बिगाड़ नहीं सकता ! अन्दर का विष बाहर की सुन्दरता को खराब करता है जो आध्यात्म वृत्ति जिसमें है वह सौन्दर्य शाली है,
*जे अणदेखी से अणण्णा रामे। जे आणणारामे से अणण्णदेसी।*
जो परमार्थ का दृष्टा है मोक्ष में रमण करता है। जो मोक्ष मार्ग में रमण करता हे वह परमार्थ दृष्टा वाला होता है।
परम- आत्मा, परम- सिद्ध, सिद्ध परमात्मा को, आत्मा को देखने वाला आत्म दृष्टा आत्मा में रमण करता है, उसका चित्त शुद्ध धैर्यशाली है चित्त में ,आत्म भाव में रमण करता है। दुनिया के हर जीव में आत्मा को देखते है *परमात्मा* पशु को भी उपदेश करते है, चंडकौशिक को उपदेश किया *बुज्झ – बुज्झ संभुज* जाग जाओ.. जाग जा सम्यक प्रकार से जाग। तु भी आत्मा हे , तु भी कल्याण का अधिकारी है। सम्यक प्रकार से सम्बुज जाग जाते है वे 12वृत ग्रहण कर लेते है, ये दलाली कर सकते हैं दान कर सकते वे एक भव करके मोक्ष करके मोक्ष जा सकते है ।
*दृश्टान्त*- बलभद्र मुनि जी को एक हिरण ने सुपात्र दान की दलाली की ओर वह व्यक्ति सुपात्र दान देंने वाला तीनो आयुष का बंध करके *तीनो पांचवे देव लोक में जाते है ।*
वस्तु का महत्व नही भाव का महत्व है ,हमारा सारा जीवन *पर बुद्धि* से संचालित है , खुद ने क्या किया?
खाने की चीज , गाड़ी , मकान बनाये *दूसरे की बुद्धि* से …रहना उनको कि तुमको !!
पर बुद्धि से जीवन संचालित है इसलिये जीवन दुखी , हमने *ज्ञान ,धन* का उपयोग किया नही जिसके साथ जी रहे है पर बुद्धि से जी रहे है ,
कितना बाहर घुमोगे, कितने मजे लोगे, उसके पीछे विराधना होगी *साधन* विराधना से बनेंगे, उसमें कीतनी हिंसा….
*हम खाये पिये मौज करे, व्यापार करे गल्लों का*,
*सामायिक ,पौषध, प्रतिक्रमण करे वो काम है निठल्लों का।।*
तुम्हारा चित्त का उल्लास भौतिकता से जुड़ा है, जीवों के प्रति कारुण्य भाव हो। आत्मा का उल्लास हो,,, भौतिक साधन, परिग्रह में रहते आये है यही एक मौका मिला इसका लाभ लेना है तो ले लो। आगे दुर्लभ, कई भव, कमों के साथ भोगना होगा। मनुष्य भव की किमत जानो!! अनेक पूण्य के उदय से है, जिनवाणी मिलना मुश्किल, अब आगे पुरुषार्थ आपका,, पूण्य तुमको साधन दे सकता है *पुरुषार्थ* तुमको करना, जिनवाणी, साधु, पर श्रद्धा है..बाकी पुरुषार्थ बचा, पुरुषार्थ भाव का, मन का पुरुषार्थ चाहिए। पच्चखाण से मन डग मग नही होता ।
चिन्तन के अभाव में ज्ञान पैदा नही होता है , विकास जितना होता है चिन्तन जरूरी.
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