चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा संसार के चक्रव्यूह से छूटना है तो भोजन करते समय विचार करें कि कब अनाहार बनूंगा।
सुखी होने के चार मंत्र हैं-आज तक जिसे नहीं जाना उसे जानना है, अपनी आत्मा के अतिरिक्त हमने सब कुछ जाना है, अब आत्मा की पहचान करनी है और आज तक जिसे नहीं पाया उसे पाना है।
हमने भौतिक सुख-सुविधा तो बहुत प्राप्त की, अब सम्यक ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र को पाना है। आज तक जिसे नहीं छोड़ा उसे छोडऩा है।
सुख की तीन चाबियां हैं-अपेक्षा मत करो, आवेश में मत आओ और अधीरता मत लाओ। साध्वी ने कहा इन्सान इंद्रियजन्य सुख में ही सच्चा सुख मान रहा है पर ये सुख नहीं सुखाभास है।
आध्यात्मिक सुख की तरफ सभी का चिंतन हो। इंसान लाखों इरादे व मुरादें और आंसू बहाता है तब जाकर एक मुस्कान मिलती है।
चार दिन का जीवन मिला है अंत में जाना ही है। कब चले जाएंगे भरोसा ही नहीं इसलिए आराधना से जुड़ें। साध्वी अपूर्वाश्री ने कहा दान, शील, तप, भाव में दान ही धर्म की सीढ़ी है।