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आध्यात्मिक रुप से चिंतनशील होकर दया, करुणा के साथ क्षमा लें व दें: साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी

आध्यात्मिक रुप से चिंतनशील होकर दया, करुणा के साथ क्षमा लें व दें: साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी

28 सितंबर को महामंगलकारी अनुष्ठान के बेनर का हुआ विमोचन

बेंगलूरु। स्थानीय वीवीपुरम स्थित महावीर धर्मशाला में मंगलवार को संवत्सरी महापर्व का भव्य आयोजन हुआ। बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं के क्षमापना की इस महफिल रुपी श्रद्धा के सैलाब में आस्था और भक्ति की डूबकी अनुष्ठान आराधिका, शासनसिंहनी साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी ने अपने प्रवचन के माध्यम से लगवाई। गुरु दिवाकर केवल कमला वर्षावास समिति के तत्वावधान चातुर्मासिक पर्व के श्रद्धा, भक्ति और आध्यात्मिक उल्लास के 50वें दिन पर्वाधिराज पर्व पर्युषण के समापन अवसर साध्वीजी ने स्वयं बेहद मृदुभावों एवं हृदय के अंतःकरण के साथ मंच से सभी साध्वीमंडल की ओर से ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ के उद्घोष कर श्रावक-श्राविकाओं से क्षमापना की।
उन्होंने कहा कि क्षमापना से कोई छोटा-बड़ा नहीं होता है। संवत्सरी महापर्व को दो दिलों को जोड़ने का साधन बताते हुए साध्वीश्री ने कहा कि जब तक यह नश्वर शरीर शव बने उससे पूर्व परमात्मा से साक्षात्कार का संदेश पर्युषण देता है। उन्होंने कहा कि एक श्रावक के रुप में किसी भी तपस्या को करना आसान हो सकता है, लेकिन क्षमा का दान देना बहुत कठिन है।
क्षमा की आवाज दिल से निकलनी चाहिए। अहंकार को त्यागने के साथ-साथ सभी को बड़ा दिल रखकर इस पर्व का उल्लास दुगुना करना चाहिए। पर्व दिवस विशेष पर डाॅ.कुमुदलताजी ने कहा कि जिनशासन के गौरव को बढ़ाने के लिए समस्त जैन धर्मावलंबी अपने जैनत्व के प्रति आध्यात्मिक रुप से चिंतनशील रहते हुए दया, करुणा व क्षमा को अहसास करना चाहिए। उन्होंने कौवे, हंस व बगुले से जुड़ी एक कहानी के माध्यम से यह भी कहा कि क्षमा देना कायरता नहीं, बल्कि शूरवीरता का कार्य होता है।
जरुरत हमें हमारे धर्म के मर्म को समझने की है। साध्वीश्री ने जीवन की ग्रंथि को खोलकर निग्रंथी बनने की भी प्रेरणा दी। इससे पूर्व अनेक भजनोें के माध्यम से साध्वीश्री महाप्रज्ञाजी ने कहा कि ‘जहां जन्म के वैरभाव का होता है निपटारा, वह पर्व पर्युषण हमारा, वह दिन संवत्सरी प्यारा..।’ उन्होंने कहा कि पर्युषण पर्व का संबंध शरीर से नहीं अपितु आत्मा से है।
आत्मा को सजाने वाले अर्थात् मैल को साफ करने वाले इस पर्व पर हम अपने इस जन्म के साथ-साथ जन्मोंजन्म के पापों को धो सकते हैं। क्षमा करने पर जीवन के संवरने की बात के साथ महाप्रज्ञाजी ने कहा कि मन से पश्चाताप् के साथ दुश्मन को भी क्षमा करने के भावों को प्रबल करना चाहिए। साध्वीश्री डाॅ.पद्मकीर्तिजी ने अंतगढ सूत्र एवं कल्पसूत्र का वाचन किया। राजकीर्तिजी ने गीतिका प्रस्तुत की। समिति के महामंत्री चेतन दरड़ा ने बताया कि साध्वीश्री डाॅ.पद्मकीर्तिजी के निर्देशन में महिला मंडल तथा बालिका मंडल द्वारा जंबू स्वामी की नाटिका का मंचन भी किया गया।
साध्वीवृंद की निश्रा में आगामी 28 व 29 सितंबर को आयोजित होने वाले 24 घंटे के महामंगलकारी श्री अरिष्टनेमीजी व श्री पाश्र्वनाथजी के अनुष्ठान के बैनर का विमोचन किया गया। इसमें समिति के अध्यक्ष केसरीमल बुरड़, चेयरमैन किरणचंद मरलेचा, कार्याध्यक्ष पन्नालाल कोठारी, महामंत्री चेतनप्रकाश दरड़ा, कोषाध्यक्ष गुलाबचंद पगारिया, सहकोषाध्यक्ष रमेश सिसोदिया, नथमल मूथा, ज्ञानचंद मूथा, निर्मल कटारिया, जंबू दुग्गड़ व चेन्नई के हीरादेवी किशनलाल लूणिया ट्रस्ट के ट्रस्टी दीपचंद पप्पूसा लूणिया मौजूद रहे।
समिति के सहमंत्री अशोक रांका ने बताया कि धर्मसभा में हैदराबाद, चेन्नई, कालहस्ती, गंगावती, अहमदनगर, नासिक, पूणे, सिलूरपेट, मैसूरु सहित शहर के विभिन्न उपनगरों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने शिरकत की। साध्वीवृंद द्वारा विभिन्न प्रकार की तपस्याएं करने वाले श्रावक-श्राविकाओं को पच्चखान कराए गए।
रांका ने बताया कि बुधवार को प्रवचन का समय 8.30 बजे से 9.30 बजे का रहेगा तथा सामूहिक क्षमापना का कार्यक्रम रहेगा। धर्मसभा का संचालन अशोककुमार गादिया ने किया। सभी का आभार युवा समिति के अध्यक्ष राजेश गोलेच्छा व उपाध्यक्ष संजय दरड़ा ने जताया।

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