माधावरम्, चेन्नई ; आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि श्री सुधाकरजी ने जैन तेरापंथ नगर, माधावरम्, चेन्नई स्थित जय समवसरण में प्रवचन करते हुए कहां कि हमें आध्यात्मिक और सहज आनन्द की अनुभूति जगाने की कला सीखनी चाहिये। इसके बिना धार्मिक साधना और तपस्या भार बन जाती है। “आनन्द ही जीवन है” यह आध्यात्मिक जीवन दर्शन का प्रमुख सूत्र है। हमें सांस भीतर आनन्द भीतर, सांस बाहर तनाव बाहर का जागरुकता से अभ्यास करना चाहिये।
जो व्यक्ति सहज प्रसन्न और संतुष्ट होता है, वह क्रोध, इर्ष्या, आवेश आदि नकारात्मक विचारों और प्रवृत्तियों से स्वतः दूर हो जाता है। आज के पारिवारिक जीवन में परस्पर तनाव और टकराव बहुत अधिक दिखाई दे रहा है, इसके साथ ही ईर्ष्या की मनोवृत्ति का भी बहुत विस्तार हो रहा है। जिसके जीवन में सहज आनन्द का जागरण हो जाता है। वह इस प्रकार की अशुद्ध प्रवृतियों से अपने आप दूर हो जाता है तथा सबवे प्रति मैत्री, समता और करुणा की वर्षा करता हैं।
मुनि नरेशकुमारजी ने कहा हमें जीवन में सहजता, सरलता का विकास करना चाहिए। जहां सरलता होती है, वहीं पर धर्म का वास होता है।