जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने आदिनाथ भगवान के भक्ति स्वरूप आचार्य मानतुंग विरचित श्री भक्तामर स्तोत्र पर प्रवचन करते हुए कहा कि तीर्थंकरो मे उत्तम से उत्तम ज्ञान होता है! जिसे केवल ज्ञान कहा जाता है जिसका भावर्थ है सर्वोच्च ज्ञान जहाँ सदा सदा के लिए अज्ञानता नष्ट हो जाती है! तीनों लोको मे प्रकाशमान रातदिन सतत विदमान संसार की कोई भी उथल पुथल घटना जिनसे छुपी नहीं रह पाती! यहाँ तक मानव पशु पक्षी एकांन्द्रिय से लेकर पंचाइन्द्रिय तक के मनोभावो को चाहे शुभ हो या अशुभ हो समस्त भावों को पाप पुण्य के वे ज्ञाता होते है!
अत : इंसान दुनियां से तो अपने पाप कई बार छिपा लेता है लेकिन ईश्वर के आगे पाप छिप नहीं पाते। उनका दिव्य ज्ञान दीपक की रोशनी से भी महान होता है क्योंकि दिए की एक सीमा होती है तेल बाती के बिन वह जल भी नहीं पाता और हवा के झोंके से वह बुझ जाता है। कहा भी गया है दिए तले अँधेरा उसके भीतर अँधेरा छिपा रहता है अत : केवल ज्ञान तो रातदिन प्रकाश मान रहता है! प्रभु की स्तुति मे कहा गया की आपका ज्ञान सूर्य वत भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि सूर्य भी दिन की सीमा मे ही प्रकाशित रहता है, उसको भी समय समय पर ग्रहण लगते रहते है एवं दिन मे तीन बार भिन्न रूपेण दिखलाई देता है।
तीन अवस्थाओ मे प्रात : मध्यन्ह सांय कालीन रूप मे गुजरता रहता है! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा श्रद्धा के साथ भक्तामर जी का पठन पाठन किया गया! गुरु पुष्कर जन्मोउत्स्व सप्ताह के अंतर्गत विद्या दान के रूप मे विभिन्न स्कूलों मे बालकों को उपहार दिए गए! महामंत्री उमेश जैन ने सभा का संचालन करते हुए भाग्यशाली भाई बहिनों को लाभार्थी परिवारों की और से रजत मुद्रा व सभी का प्रसाद रूप मे सम्मान सत्कार किया गया।