चेन्नई. अयनावरम जैन भवन में विराजित साध्वी नेहाश्री ने शुक्रवार को कहा कि मनुष्य की पहचान उसके बोलने के तरीके और आदर्श से होती है। जैसे वकील और पुलिस की पहचान उनके कपड़ो से होती है। वैसे ही जैन संतो की पहचान उनके आदर्श से होती है।
जो आदर्श जीवन जीते हैं उनकी पहचान सर्वोपरि होती है। उन्होंने कहा कि भगवान के शासन के 159000 श्रावक थे लेकिन उनमें से सिर्फ 10 श्रावकों का ही वर्णन उपसंग दशांग में है।
भगवान के 14 हजार संत थे लेकिन ऊंचे आदर्श वाले घमा अडगार थे। जिस प्रकार से वनों में नंदन वन और हाथियों में रावत हाथी श्रेष्ठ होता है, वैसे ही मनुष्य को जीन शासन में उसका जीवन श्रेष्ठ बनाना चाहिए। स्वाद लेकर खाना खाते हुए और भाषा का विवेक नहीं होने पर कर्म बंधन करती है।
उन्होंने कहा कि आयंबिल से स्वाद विजय का अवसर मिलता है और तप होती है। तप कर मनुष्य आदर्श जीवन जीने वाला बन सकता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को अपनी गति नहीं बिगाडऩी चाहिए।
आशक्ति में समभाव नहीं आता है बल्कि आशक्ति छूटने के बाद ही समता आती है। आदर्श जीवन जीना है तो अनाशक्त बनने की जरूरत है। आदर्श जीवन जीने वालों की अलग पहचान बन जाती है।