चेन्नई. माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में आचार्य महाश्रमण ने कहा आदमी जिस लेश्या में मरता है उसी लेश्या में उसका जन्म भी होता है। आदमी को अपनी भाव धारा को शुद्ध करने और शुभ लेश्या में रहने का प्रयास करना चाहिए। किसी को नुकसान पहुंचाने, किसी को मारने-पीटने के भावों से भी बचना चाहिए तथा शुद्ध भावों से दूसरों के हित के लिए अन्य को सन्मार्ग पर लाने आदि जैसे भावों को पुष्ट बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
एक आदमी के मन के भीतर न जाने कितने भाव आते-जाते रहते हैं। विभिन्न विचार भावों की अवस्थिति का कारण लेश्याएं होती हैं। उन्होंनेे लेश्याओं के बारे में विस्तार से प्रकाश डालते हुए बताया कि लेश्याएं छह प्रकार की होती हैं। इनमें से प्रथम तीन लेश्याएं पाप लेश्याएं होती हैं। कहा जाता है कि
उन्होंने भाद्रपद शुक्ल द्वादशी से जुड़े तीन प्रसंगों के बारे में बताया कि तेरापंथ धर्मसंघ के संस्थापक आचार्य भिक्षु ने इसी दिन संथारा ग्रहण किया था और इस दिन ही तेरापंथ धर्मसंघ के सप्तम आचार्य डालगणी का महाप्रयाण हुआ। इतना ही नहीं आचार्य महाप्रज्ञ ने अपने उत्तराधिकारी की घोषणा भी इसी दिन की थी।
उपमुख्यमंत्री पहुंचे आचार्य के दर्शनार्थ
गुरुवार को तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम आचार्य के दर्शनाथ महाश्रमण समवशरण पहुंचे। आचार्य ने उपमुख्यमंत्री को अहिंसा यात्रा व उसके तीन मुख्य उद्देश्यों के बारे में बताया। इस मौके पर उनका चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-चेन्नई के अध्यक्ष धर्मचंद लूंकड़, स्वागताध्यक्ष प्यारेलाल पीतलिया व पदाधिकारियों ने सम्मान किया। पन्नीरसेल्वम ने कहा वे आचार्य के दर्शन के बाद एक बार फिर दर्शन करने की इच्छा रखते हंै।
धर्मसभा में जैन विश्व भारती द्वारा पद्मभूषण प्राप्त डॉ. शिवकुमार सरीन को वर्ष 2018 का प्रज्ञा पुरस्कार प्रदान किया गया। उनको यह पुरस्कार जैन विश्व भारती के अध्यक्ष रमेशचन्द बोहरा, मंत्री राजेश कोठारी, पुखराज बड़ोला, महासभा के अध्यक्ष हंसराज बेताला व अमृतवाणी के अध्यक्ष सुखराज सेठिया ने प्रदान किया। डॉ. सरीन ने बाद में विचार व्यक्त किए। जैन विश्व भारती के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कीर्तिकुमार व श्रीचंद दुगड़ ने भी भावाभिव्यक्ति दी। संचालन राजेश कोठारी ने किया।