श्री जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में जयधुरंधर मुनि के सानिध्य में जयपुरंदर मुनि ने उत्तराध्ययन सूत्र के पांचवें एवं छठे अध्ययन का विवेचन करते हुए कहा साधक को आत्म हित के लिए सदैव जागृत रहते हुए सावधानीपूर्वक क्रिया करनी चाहिए।
जिसका स्वविवेक जागृत रहता है, वह हर कार्य सोच विचारकर करता है। जीव अपने ही किए हुए कर्मों से इस लोक परलोक में दुख पाता है। कर्मों का फल भुगते बिना कोई भी छुटकारा प्राप्त नहीं कर सकता है।
जिस प्रकार गाड़ीवान यदि जानबूझकर समतल रास्ते को छोड़कर विषम मार्ग को अपनाता है तो धुरी के टूट जाने पर शोक को प्राप्त होता है ,ठीक इसी प्रकार से धर्म को छोड़ अधर्म का आचरण करने वाला मृत्यु को प्राप्त होने पर अपने दुष्ट कर्मों को याद करके पश्चाताप करता है। जो भी प्राणी जन्म लेता है अवश्यम्भावी मृत्यु को प्राप्त करता है। मृत्यु ज्ञानी को भी प्राप्त होती है अज्ञानी को भी प्राप्त होती है।
ज्ञानी मृत्यु को जीतने का प्रयास करते है इसलिए मृत्यु आने पर घबराते नहीं हैं और उसका डटकर सामना करते हैं। दूसरी ओर अज्ञानी प्राणी उस मृत्यु के भय से प्रतिक्षण मरते हैं। अज्ञानी जीव दांव में हारे हुए जुआरी के सामान अपने जीवन को व्यर्थ में हारने में के बाद पश्चाताप करते हैं।
साधक को क्षमा, समता , सहनशीलता आदि गुणों का अपनाते हुए अपनी आत्मा को सदैव प्रसन्न रखना चाहिए और मृत्यु के समय भी व्याकुलता रहित एकदम शांत होना चाहिए। आत्मा को सत्य ,संयम, सदाचार के राह पर आगे बढ़ते हुए सभी प्राणियों के साथ मैत्री भाव रखना चाहिए। हर प्राणी को अपनी आत्मा प्रिय है। अतः किसी भी प्राणी का घात नहीं करना चाहिए।
सांसारिक सुख सुविधा के साधन भावी दुख एवं दुविधा के कारण बनते हैं। धन, दौलत, परिजन कोई भी अपने कर्मों के वशीभूत दुख भोंगते प्राणी को दुख से छुड़ाने में समर्थ नहीं है। धर्म सभा में ईरोड निवासी गौतम चंद बाघमार के 8 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण करने पर संघ के पदाधिकारियों द्वारा उनका सम्मान किया गया।
समणी श्रीनिधि एवं श्रतनिधि के सानिध्य में आयोजित सामूहिक पुच्छिसुणं जाप में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। मुनिवृंद के सानिध्य में 25 से 27 अक्टूबर को प्रातः 8:00 बजे से उतराध्ययन सूत्र का मूल वांचन होगा तथा दीपावली के उपलक्ष में सामूहिक तेला का आयोजन होगा।