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आत्म साधना के लिए व्यक्ति को प्रमाद नहीं करना चाहिए — महासती धर्मप्रभा

आत्म साधना के लिए व्यक्ति को प्रमाद नहीं करना चाहिए — महासती धर्मप्रभा

Sagevaani.com @चैन्नई। आत्म साधना के लिए प्रमाद न करें। प्रमाद ही आत्मा का सबसे बड़ा शत्रु है। बुधवार साहुकार पेट जैन भवन में महासती धर्मप्रभा ने श्रावक-श्राविकाओं से कहा कि मनुष्य का क्षण मात्र का प्रमाद उसके जीवन प्रयाय मे की गई साधना को मिट्टी में मिला देता है और उसकी आत्मा को नरक गति दिलवा देता है। इंसान को शरीर की चिंता होती है, परन्तु आत्मा की चिंता नहीं ।शरीर की शोभा पसंद आती है परन्तु आत्मा की शोभा नहीं। शरीर को कुछ भी नहीं होना चाहिए यही सोचकर मनुष्य आत्मा के लिए कुछ भी नहीं करता है वह प्रमाद मे रहकर साधना करता है तो उसे साधना का प्रतिफल नहीं मिलने वाला है। साधना आत्मा के लिए होगी तभी मनुष्य अपनी आत्मा को मोक्ष दिलवा सकता है आज तक हमारी आत्मा ने जितना पुरुषार्थ संसार के सुख को प्राप्त करने के लिए किया है अगर व्यक्ति ने अपने शरीर को छोड़कर अपनी आत्मा को मोक्ष दिलवाने केलिए वह साधना करता है तो वह अपनी आत्मा को दुखमय संसार के भटकाव से बाहर निकलवा सकता है।

साध्वी स्नेहप्रभा ने भगवान महावीर स्वामी की अंतिम श्रुतदेशना उत्ताराध्यय के मूल सूत्र का विवेचन करते हुए कहा कि तिर्थंकर प्रभु महावीर ने केवल ज्ञान और मोक्ष प्राप्त करने पूर्व सभी जीवो को शरीर और आत्मा के भेद बताऐ थे महावीर की अंतिम श्रतु देशना का मनुष्य पालन और अनूसरण करके धर्म के मार्ग पर चलता है तो वह अपनी आत्मा को संसार से उत्धान करवा सकता है। साहुकारपेट श्री संघ के कार्याध्यक्ष महावीर चन्द सिसोदिया ने जानकारी देते हुए बताया अनेक भाई और बहनों के साथ श्री संघ के मंत्री सज्जनराज सुराणा, शम्भूसिंह कावड़िया, पृथ्वीराज वाघरेचा, जवंरीलाल कटारिया, विजराज दुग्गड़, उत्तमचन्द नाहर आदि की धर्मसभा में उपस्थिति रही और सभी ने वितराग वाणी का लाभ लिया।

प्रवक्ता सुनिल चपलोत

श्री एस.एस.जैन भवन, साहुकार पेट, चैन्नई

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