चेन्नई. किलपॉक में रंगनाथन एवेन्यू स्थित एससी शाह भवन में चातुर्मासार्थ विराजित मुनि तीर्थ हंसविजय ने कहा मोह का अंधकार आत्मा की असली पहचान को धूमिल कर देता है । जब आपके विवेक का सूर्य उदय हो जाएगा तब आत्मा का विकास होगा ।
विवेक यानी आत्म जागृति । एक बार आत्म जागृति हो गई तो सम्यक दर्शन की प्राप्ति निश्चित है। उन्होंने कहा संसार में दुख का कारण आत्मा का ज्ञान का अभाव है । जिस समय आत्मा का बोध हो जाएगा संसार की समस्याएँ खत्म हो जाएगी । आत्मा का बोध जागृत करने के लिए सुबह जागते ही तीन चीजों का स्मरण करो मैं कौन हूँ, मैं अब क्या कर रहा हूँ और मुझे क्या करना चाहिए।
उन्होंने कहा अगर आपको आत्मा का बोध है तो आपने उसके लिए किया क्या, इस पर विचार करो । परदया कितनी भी करो लेकिन स्वदया यानी आत्मा का उद्धार नहीं किया तो कोई काम की नहीं है ।
मानव जीवन मिल गया फिर भी आत्मा का ज्ञान नहीं है क्योंकि मोह माया के बंधन में फंसे हैं । आत्मा का स्मरण होता रहे और मोह की पराजय हो, यही प्रभु से याचना करो। मुनि ने कहा तप द्वारा आहार संज्ञा को तोडऩे के लिए 22 जुलाई से शुरू होने जा रहे प्रतर तप की आराधना में जुड़ें ।