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आत्म के विकास के लिये सद्गुरु होना ही चाईए: डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा.

आत्म के विकास के लिये सद्गुरु होना ही चाईए: डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा.

     स्थल: श्री राजेन्द्र भवन चेन्नई

  *विश्व हितकांक्षी प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी महाराज साहब के प्रशिष्यरत्न विश्व संत, परम पूज्य प्रभुमय श्रीमद् विजय जयंतसेनसुरीश्वरजी म.सा.के कृपापात्र सुशिष्यरत्न श्रुतप्रभावक मुनिप्रवर श्री डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा.* के प्रवचन के अंश

   🪔 *विषय :मेरे गुरु जयंत बने भगवंत*🪔

~मनव की प्रथम गुरु माता, विद्यागुरु शिक्षक और आत्म के विकास के लिये सद्गुरु होना ही चाईए।

~जब तक हमारे भीतर मे अहंकार का नाश नही होता है तब तक शासन का प्रेम, गच्छ का प्रेम, आत्मा का प्रेम प्रकट होना असंभव है।

~ परम पूज्य राष्ट्रसंत, जयंतसेंन सुरीश्वरजी महाराज की अपूर्व शासन सेवा, गच्छ के प्रति समर्पण भाव और दीर्घ दृष्टि का मूल कारण परम पूज्य यतींद्र सुरीश्वरजी महाराज साहब भी थे।

~ परम पूज्य उग्र विहारी जयंतसेन सुरीश्वरजी महाराज ने 55 दिन में 1800 किलोमीटर का उग्र विहार करके श्री विजयवाड़ा से भीनमाल नगर में प्रतिष्ठा करके अद्भुत शासन सेवा की थी।

~ सद्गुरु जब जीवंत है तब उनकी अपूर्व आज्ञा का पालन, सेवा होनी ही चाहिए और जब वह शक्ति रूप है तब उनकी महिमा बढानी ही चाहिए।

~ सद्गुरु की कृपा का फल यह है की भक्त के जीवन में भी सद्गुरु के जैसे ही गुण का प्रगटी कारण हो और दोषों का क्षय हो।

~ परम पूज्य संघ एकता शिल्पी श्रीजयंतसेन सुरीश्वरजी म. की स्वयं के स्वार्थ, मान, प्रतिष्ठा का नहीं सोच कर हर पल संघ की एकता, संघ में संप की भावना का कार्य किया था।

~ परम पूज्य नम्रता मूर्ति श्री जयंतसेन सुरीश्वरजी महाराजा ने डीसानगर मे परम पूज्य कल्याण रत्न महाराजा के छोटी 8-10 साल की उम्र के बाल मुनि को दर्शन करने वरघोडा रोक कर उनकी शता पूछने गए थे।

~ परम पूज्य प्रभु तुल्य श्री जयंत सेन सुरीश्वर जी की चैत्र सुदी 15 गिरिराज की यात्रा के लिए, मिठाई, फरसाण, सब्जी का हर साल त्याग करके 4 साल बाद जब योग बना तब चौविहार उपवास करके सोनगढ़ से 23 किलोमीटर का विहार करके प्रभु दर्शन का आनंद पाया था।

    *”जय जिनेंद्र-जय गुरुदेव”*

🏫 *श्री राजेन्द्रसुरीश्वरजी जैन ट्रस्ट, चेन्नई*🇳🇪

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