पुज्य जयतिलक जी म स ने रायपुरम जैन भवन में प्रवचन में बताया कि आत्मा साधना में तप का अहम स्थान है ताप रज मेल खाने का साबुन हैं। तप एक सामान्य जीव से असामान्य व्यक्ती एक आंगीकार कर आत्मा को भावित कर सकत है! अनशन उनोदरी, भिक्षाचर्या का विवेचन हो चुका है। भिक्षाचर्या तप गोचरी दया या श्रमण दया में भिक्षाचर्या का विवचन है संकल्प का अनुसरण करते है। गृहस्थ भी उस दिन निर्दोष आहार की गवेषणा करते है! सरस, नीरस जो भी आहार मिले समभाव से, अनासक्त भाव से ग्रहण करते है! और परम संतुष्टि का अनुभव करते है कर्म निर्जरा करते है! अनंत उल्लास की अनुभूति होने से अनंत कर्म निर्जरा होती है। गोचरी के भय से मुक्त होकर दीक्षा के भाव भी उत्पन्न हो सकता है।
रसपरित्याग : 1)]:- रसना को वश में करना! पाँचो विगयो का पूर्ण रूप से त्याग। रस उत्पन्न करने वाले, पौषटिक, स्वादिष्ट भोजन का त्याग करते है एवं नीरस भोजन को अनासक्त भाव से जैसे सर्प बील में प्रवेश करता है वैसे ही आहार को सीधा गले से नीचे उतारता है! उसे कहते है आयंबिल, जिससे कर्म निर्जरा का मार्ग प्रशस्त होता है।
एक एक मुनिवर रसना त्यागी ” मुनिवर रसना का त्याग कर रसना को जीतने के लिए इस रस परित्याग का उपदेश दिए ! इस रसना की वजह से कर्म बांध अधिक होता है।
यदि घर में बहू ऐसी आ जाय जिसे गृहकार्य में नहीं आता हो तो उसे प्रेमपूर्वक ग्रह कार्य सीखावें। सासुमाँ अपने कर्तव्य को समझे, पति अपने कर्तव्य को समझे। रस परित्याग करने वाला समभाव में रहता है! ! आठ कर्मों की धारा को तोडता है। ग्रंथों में एक उल्लेख मिलता है। एक व्यक्ति ने दीक्षा ली वो भी सिर्फ घेवर की आसक्ती में। यदि जीव भवी है तो वह निश्चित मोक्ष जाता है। मुनिराज गोचरी से वापिस आने को पश्चात पात्र को रखकर चउवीसत्व करने लगे! उसी समय झोली हट गई उसी समय एक श्रावक दर्शनार्थ आएं तो अपनी नजर पात्र पर पड़ी जिसमें घेवर थे।
मन की आसक्ति से व्यक्ति गमन करता है उसका भोग करता है!
वह श्रावक घेवर में आसक्त था। उसने मुनिराज से कहा मुझे भी घेवर दे दीजिए। मुनिराज ने कहा यदि दीक्षा ले लो तो मैं इसमें से घेवर दे सकता हूँ! उसने दीक्षा ले ली और घेवर का भोग कर लिया। ! अब गुरू रोज घेवर कहीं से भी लाकर देते थे। कालान्तर में गुरु का वियोग हुआ! वह मुनि घेवर का आहार करते रहा।
संचालन मंत्री नरेंद्र मरलेचा ने किया।