किलपाॅक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी ने अध्यात्म कल्पद्रुम ग्रंथ के नवें अधिकार चित्त दमन अधिकार की विवेचना करते हुए कहा जीवन के उतार-चढ़ाव, धूप- छांव, संघर्ष- समाधान की केंद्रीय वस्तु चित्त है। लेकिन अपने चित्त के पास दमन करने के लिए विकल्प नहीं है। चित्त, मन और मति तीनों एक अपेक्षा से समान है। मनन करे वह मन, चिंतन करे वह चित्त, मति व मन में लंबा फर्क नहीं है।
ज्ञानी कहते हैं आत्मा राजा है और मन गुलाम है, लेकिन अब यह उलटी गंगा बह रही है। हमारी आत्मा मन का गुलाम बनकर रही है, इसलिए मन का दमन करना जरूरी है। उन्होंने कहा आत्मा का स्मरण भूल जाना अज्ञानता है। विवेक के अभाव में हमारी इंद्रियां थोड़े से आनंद के लिए भटक जाती है। हमारी आत्मा मछली, मन मच्छीमार, जाल कुविकल्प और समुद्र संसार के समान है। आत्मा रूपी मछली कुविकल्प रूपी जालों के द्वारा ही दुर्गति में जाती है। ऐसा कहा जाता है जहां काया जाती है, वहां मन साथ में जाता है, इसलिए मन यदि स्थिर न भी रहे, काया को तो जरूर स्थिर करें।।
प्रणिधान यानी निर्धार, प्रार्थना, प्रयोग आदि मन को नियंत्रित करने का कार्य कर सकते है। जीवन में प्रणिधान, अभिग्रह बना लेंगे तो अंतराय कर्म टूटेंगे। मन ही स्वर्ग, मन ही नरक और मन ही मोक्ष है। मन को ऐसी प्रार्थना करो, फिर प्रयोग शुरू कर दो। जब भी अपना मन अच्छे मूड में हो, उस समय उसको धर्म के अच्छे कार्य यानी प्रवचन, प्रायश्चित्त आदि से तुरंत जोड़ लो।
आचार्यश्री ने कहा प्रवचन अपने चित्त का दर्शन कराता है। ज्ञानी कहते हैं शास्त्र पूरे संसार के पदार्थों से भरे पड़े हैं। इनमें हेय, उपादेय सब है। उन्होंने कहा यदि ज्ञान विवेक से लिया जाए तो सम्यक बन जाता है और अविवेक से लिया जाए तो मिथ्या बन जाता है। जगत में कोई पदार्थ खराब नहीं है, हमारा उपयोग खराब है।
आदमी की भावना उत्तम रहती है, पर प्रमाद उसके आड़े आ जाते हैं। अनुकूलता, सहयोग मिलने पर उसका विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए। दुरुपयोग करने से वस्तु की गुणवत्ता हल्की मिलती है। हमें मिली हुई शक्ति का दुरुपयोग, अभिमान, उपेक्षा मत करो अन्यथा वह निम्न गुणवत्तायुक्त मिलेगी। ज्ञानियों ने कहा गलत सोचना भी मोक्ष का मार्ग बनता है, यह सोचने वाले की दृष्टि पर निर्भर करता है। जितना भी सही भी गलत इरादे से सोचें तो गलत इरादे की सजा तो मिलेगी ही।
मद और अभिमान में फर्क बताते हुए उन्होंने कहा कोई विशेष चीज अपने पास होने का घमण्ड ‘मद’ कहलाता है। अभिमान यानी अपनी प्रतिष्ठा, संपत्ति न होने के बावजूद उसकी अनुचित धारणा, अहंकार, घमंड। मद 8 प्रकार के होते हैं श्रुत मद, तप मद, रुप मद, ऐश्वर्य मद, जाति मद, कुल मद, लाभ मद और बल मद। उपशम, विवेक और संवर से इनको तोड़ा जा सकता है। पूर्व के पापों का प्रायश्चित करने से चित्त का दमन अवश्य होता है।