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आत्मा पर विश्लेषण करने वालें गुरु होते है: उदयप्रभसुरीश्वरजी म. सा.

आत्मा पर विश्लेषण करने वालें गुरु होते है: उदयप्रभसुरीश्वरजी म. सा.

श्री चंद्रप्रभु जैन नया मंदिर ट्रस्ट के तत्वावधान में चल रहे चातुर्मास की प्रवचनधारा में गच्छाधिपति प. पू. आ. भ. श्री उदयप्रभसुरीश्वरजी म. सा. ने आज के प्रवचन में कहा कि पुस्तको पर विश्लेषण करने वाले अध्यापक होते है तो आत्मा पर विश्लेषण करने वालें गुरु होते है। गुण, दोष और विश्लेषण करके गुणयुक्त और दोषमुक्त बनने वाले परमात्मा होते हैं।

आज चंद्रप्रभु भगवान के निर्वाण कल्याणक के दिन चंद्रप्रभु स्वामी के चरित्र को प्रस्तुत करते हुए प. पू. आ. भ. श्री उदयप्रभसुरीश्वरजी म. सा. ने निर्वाण यानी मोक्ष की परिभाषा समझाते हुए फरमाया कि जहां काया का बंधन नहीं, कषाय का स्वभाव नहीं, क्लेश का नामो निशान नहीं, जन्म-जरा-मरण का चक्कर नहीं, आधि-व्याधि-उपाधि का सर्जन नहीं, स्वजन-परजन का विभागी करण नहीं, मेरा-तेरा का जहां आयोजन नहीं, दुःख-दर्द-दारिद्र का जहां स्थान नहीं, वैसे एक शाश्वत-सत्य अंतरात्म सुख की अनुभूति जहां पर समय होती रहती है वैसे आत्म दशा यानी “मोक्ष”।

यह मोक्ष एक स्थान है जहां आत्म एक बार प्रवेश करता है तो वहां अनंत काल तक स्थिर बन जाता है, संसार में पुनः नही आता। आलंबन अच्छे योगी साधु आत्माएं इस संसार में रहते हुए क्रोध, आवेश, ईर्ष्या, अभिमान, तृष्णा, आसक्ति, मद, मोह, मान, माया आदि दोषों से जब जब मुक्त रहती है, उसे मोक्ष सुख का स्वाद मिलने लगता हैं। तात्पर्य अर्थ ये हुआ कि मोक्ष अपनी स्व की आत्मा में ही बसा हुआ है। उसके विविध अहिंसा, संयम, तप, परोपकार, सेवा, सदाचार के द्वारा हम प्रकट कर सकते हैं। आज के श्री चंद्रप्रभु स्वामी निर्वाण कल्याणक के मंगल दिवस हम भी दृढ़ संकल्प के साथ अहिंसा, तप, परोपकारादि गुणों को हासिल करके शीघ्र मोक्ष गामी बने।

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