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आत्मा निज स्वरूप को भूल गयी है: गुरुदेव जयतिलक मुनिजी

आत्मा निज स्वरूप को भूल गयी है: गुरुदेव जयतिलक मुनिजी

यस यस जैन संघ नार्थ टाउन में चातुर्मासार्थ विराजित गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने बताया कि जिनवाणी कहती है:- आत्मा निज स्वरूप को भूल गयी है। अनादिकाल से आत्मा संसार में भ्रमण कर रही है संसार को ही अपना मान बैठी भगवान कहते हैं संसार आपका घर नही है ईंट पत्थर का मकान आपका घर नहीं है। यदि ये घर आपका होता तो इसे छोड़ कर जाना नही पड़ता है। अनन्त भवो तक आप कितने ही मकान, घर, झोपड़ो में रह चुके हो, बना चुके हो, पर वो घर कभी आपके नहीं हुए ।

भगवान कहते है ये चिन्तन करो कि आपका घर वास्तव में कौन सा है, आपको कहाँ जाना है, इसलिए सम्यक् ज्ञान के प्रकाश में अपने घर को जानने की कोशिश करो अपनी आत्मा की शक्ति को जानो। सम्यक्त्व प्रकाश वास्तविक प्रकाश है इसी प्रकाश में आप यर्थाथ को, सत्य को जान सकते हो। सभी गुरु, तीर्थकर हमें निज घर की स्मृति दिलाते है। आत्मा को जगाने का ज्ञान देते है।

आत्मा को जगाने के लिए प्रयास आवश्यक है। जब तक आत्मा को नहीं जानोगे तब तक अपने निज पर मोक्ष की ओर कदम नही बढ़ा पाओगे और तब तक चारों गतियों में परिभ्रमण करते रहोगे। जब आत्मा निज घर में जाने का संकल्प कर लेती ही है तो उसे कोई आगे बढ़ने से रोक नहीं सकता। संकल्प मजबूत होना चाहिए उसे कोई डिगा न सके ऐसे संकल्प करो। भयभीत होकर पीछे मत लौटो |

डगमगाते पैर को फिर से मजबूती से आगे बढ़ाने का प्रयास करो। संकल्प से पीछे हटने वाले को सफलता नही मिलती। भगवान कहते हैं संकल्प से विकल्प में नहीं जाना चाहिए संकल्प-विकल्प के झूले में झूलने वाला मंजिल को नहीं पा सकता। मंजिल को प्राप्त करने वाले को बहुत प्रसन्नता होती है। यदि एक आत्मा भी अपने निज घर (मोक्ष) में जाती है तब नरक, देव आदि सम्पूर्ण लोक के जीवों को बहुत प्रसन्नता होती है।

भगवान की वाणी ही हमें निज घर के लिए जागृत करती है अन्य किसी में ये सामर्थ्य नहीं। संसार के हर क्षेत्र में दुख-सुख के प्रसंग में साथ देने वाले मित्र तो बहुत मिल जायेगें, पर जो मित्र अपने मित्र को धर्म से जोड़ता है पाप से निवृत्ति की ओर ले जाये वही सच्चा मित्र है। अपने मित्र के साथ देने के लिए बिना सच्चा धर्म ध्यान करने वाला भी नरक गति में नही जाता।

उसे सद्‌गति प्राप्त होती है धर्म प्रिय नही लगता पर जब तक मिथ्यात्व सम्यक्त्त का प्रकाश फैलता है उसे भान हो जाता जैसे कि ये धर्म उत्तम मार्ग है और उसी मार्ग पर मुझे आगे बढ़ना है। भीतर का अंधकार मिटने पर, मोह के क्षीण होने पर ही मोक्ष की उपलब्धि प्राप्त होती है इसलिए बार – बार जिनवाणी का श्रवण को सच्ची मनुष्यता प्राप्त‌ करो क्योंकि जब मानवता आयेगी तभी सपना आयेगा और फिर साधुपना आयेगा ।

इसलिए भगवान कहते है सही पात्र में डाला गया द्रव्य ही सुरक्षित रहता है। सोने के सोना रूपी द्रव्य यह शिक्षा देता है कि जागते रहो जागते रहोगे तो तुम्हारा संसार में मान बढ़ा दूँगा, नही तो मैं चला जाऊँगा। ऐसे ही जिनवाणी भी सोने नही देती प्रत्येक क्षण जगाती रहती है। जिनवाणी शुद्ध पात्र में ठहरती है। शुद्ध पात्र में ही रहने से जिनवाणी द्वारा आत्मा शक्ति बदलती है।

जिनवाणी के बिना व्यक्ति स्वयं को पहचान नहीं सकता अपने गुणों को नहीं जान सकता । सच्चे मनुष्य व श्रावक की संगति सबको अच्छी लगती है इसलिए मनुष्यता को धारण करो। तभी तुम्हार उदार होगा | सच्चा श्रावक ही स्व-पर का कल्याण करता है धर्म ज्योति को चारों ओर फैलाता है। यह जानकारी महिला मण्डल सचिव ममता कोठारी ने दी।

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