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आत्मा निंदा अमृत के समान है – साध्वी सुधा कंवर

आत्मा निंदा अमृत के समान है – साध्वी सुधा कंवर

जय जितेंद्र, कोडमबाक्कम् वड़पलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज तारीख 01 अगस्त सोमवार, परम पूज्य सुधाकवर जी मसा के मुखारविंद से:-मंगलमय महावीर भगवान की मंगलमयीदेशना में आत्म निंदा करने से पश्चाताप का भाव जागृत होता है। वह आत्मा करण गुण श्रेणी को प्राप्त करके मोहनिय कर्म को शेयर कर देता है अपने दुष्चरण के प्रति आत्मग्लानि का भाग होना निंदा है। निंदा दो प्रकार की होती है – आत्म निंदा एवं परनिंदा। आत्म निंदा अमृत के समान है तो परनिंदा विष के समान हैं। आत्म निंदा करने वाला साधक आत्मा विकास के पथ को प्रशस्त करता है और पर निंदा करने वाला दुर्गति में जाता है आत्मा का पतन कर देता है। परमात्मा ने कहा है कि परनिंदा करना पीठ का मांस खाने के समान हैं। इस संसार में तीन प्रकार के लोग होते हैं निंदनीय वंदनीय और अभिनंदन है निंदनीय लोग निंदा जनक कार्यों में व्यस्त रहते हैं, वंदनीय लोग उच्च कोटि के कार्यों में व्यस्त रहते हैं, एवं अभिनंदनीय लोग उत्तम कार्य में व्यस्त रहते हैं।

प.पू. सुयशा श्रीजी के मुखारविंद से:- आध्यात्मिक को जीवन में अपनाने से पहले मनोभूमि को साफ करना होता है। जैसे किसान खेत में बीज का वपन करने से पहले धरती को अच्छे से साफ कर देता है ताकि फसल अच्छी पैदा हो। इसी प्रकार अगर अंतर्मन में अध्यात्म की फसल को अच्छा बनाना है तो मनो भूमि की सफाई करनी होगी। मनोभूमि की सफाई करना अर्थात अपने भीतर के दुर्गुणों को कम करना। आज की धर्म सभा में श्रीमान अशोक जी तालेड़ा ने 29 उपवास, श्रीमती सुशीला जी बाफना ने 21 उपवास, मनीषा जी लुंकड़ ने 16 उपवास के प्रत्याख्यान किए। इसी के साथ कई धर्म प्रेमी बंधुओं ने विविध तपस्याओं के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। आज की धर्म सभा में भांडुप एवं अंधेरी मुंबई से, नाथद्वारा,उदयपुर एवं चेन्नई के उपनगरों से श्रद्धालु गण उपस्थित थे।

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