कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज शनिवार तारीख 15 अक्तूबर को प.पू.सुधाकवर जी मसा के सानिध्य में मृदभाषी साधना श्रीजी ने उत्तराध्ययन सूत्र फरमाया! सुयशा श्रीजी मसा ने भगवान महावीर स्वामी की जीवनी को आगे बढाते हुए फरमाया कि उनकी आत्मा जीवन के कई तरह के उतार-चढ़ाव को देख रही थी!
नयसार, मरीची विश्वभूति जैसे भव और जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव संभूति मुनि के पास संयम अंगीकार करने के बाद भी उनकी कर्म निर्जरा उतनी नहीं हुई जितनी अपेक्षित थी! उनकी आत्मा हमेशा हिंसा और क्रूरता के बीच में रही! यही वजह थी कि महावीर की आत्मा महारानी विमला के कुक्षी में आते ही उन्हें बुरे एवं कलुषित विचार आने लगे! आचार्य भगवान ने उन्हें आहर प्रवृत्ति यानि प्राकृत आहार, स्तोत्र की आराधना एवं गर्भस्थ शिशु के लिए सद्भावना रखने की सलाह दी!
पुत्र का नाम रखा था विमल! उसकी हरकतों से कोई अगर दुखी होता तो वह खुश होता और कोई दूसरों की खुशी देखकर तिल मिला जाता था! माता अपने बच्चे को सुधारने की निरंतर कोशिश कर रही थी! एक दिन किसी बहेलिया ने कबूतरों को पकड़ने के लिए जाल बिछा रखा था और बहुत से कबूतर उस में फंस गए थे! उस समय राजकुमार विमल उधर से निकल रहे थे और उन्होंने घोड़े से उतर कर उस जाल को कतर के धीरे-धीरे सभी कबूतरों को छोड़ दिया और उन्हें उड़ते हुए देखकर बहुत खुश हुए!
विमल राजकुमार को खुश देखते ही पहले तो रानी आशंका से परेशान हो गयी लेकिन जब उसकी आंखों में झांका तो समझ गयी कि ये तो सुख और दया का संकेत है! भगवान महावीर की आत्मा कितने ही भवों में नहीं सुधरी लेकिन सिर्फ माता के स्नेह वात्सल्य से सुधर गयी! देवलोक से भी वंदन नमस्कार तीर्थंकरों के पहले उनकी माता को किया जाता है! 22वें भव में माता विमला के कारण सभी दुर्गुण समाप्त हो जाते है और दुबारा कभी बुरे की तरफ रुख नहीं करते!
इसके बाद भगवान महावीर मनुष्य भव से फिर मनुष्य भव में गये, और चक्रवर्ती बने! दूसरी उद्घोषणा प्रियमित्र चक्रवर्ती बनने की बारी थी! प्रियमित्र चक्रवर्ती बनने के बाद, छः खंड के स्वामी ने उत्तम राज्य व्यवस्था बनाई! संसार का नियम है कि हम दिशा तो बदल सकते हैं लेकिन दशा को नहीं! व्यवस्था बदल सकते हैं लेकिन स्वभाव को नहीं! मनुष्य की मूलभूत जरूरतें खाना-पीना और आश्रय है!एक दिन नगर भ्रमण के समय वेश बदलकर विमल राजा निकलते हैं और उन्हें एक जगह पर बड़ी दुर्गंध आती है! मालूम पड़ता है कि सेनापति और श्रेष्ठी के पुत्र कुछ गलत कार्य कर रहे थे!
पूछने पर राजपुरोहित बड़ी निर्लज्जता से जवाब देते हैं कि आपके सुख-दुख का नजरिया और उनके सुख-दुख का नजरिया अलग अलग है! प्रजा की भावना बदलो या तीर्थंकर बन जाओ! राजसत्ता से लोगों को बदलने से अच्छा है धर्म सत्ता से लोगों को बदलना! प्रियमित्र चक्रवर्ती संयम ग्रहण करके दिल की तपस्या करके देवलोक में जाते हैं। सर्वज्ञ सर्वदर्शी तीर्थंकरत्न लोगों के जीवन में पुण्य का उपार्जन करते हैं! अगले जनम में भगवान महावीर जितशत्रु राजा रानी धारिणी के गर्भ में आते हैं! राजा का सिर बहुत दुखता है और रानी के सिर्फ उनके माथे पर हाथ फेरने से दर्द चला जाता है! यह शुभ संकेत था!
बालक का नाम नंदन रखा गया जो खुद भी आनंद से रहता था और दूसरों को भी आनंदित करता था! एक बार एक ब्राह्मण के पेट में पीड़ा हो जाती है और नन्दन दूतों को भेजते और ब्राह्मण के ठीक होने तक अन्न जल का त्याग करते हैं और ब्राह्मण ठीक भी हो जाता है! एक योगी दूतों को यह कहकर भेज देता है कि ब्राह्मण की पीड़ा समाप्त हो चुकी हैं! राजा नंदन चिन्तन करते हैं कि योगी को कैसे मालूम पड़ा कि ब्राह्मण ठीक हो गया! अब वे उस योगी जैसा बनना चाहते हैं और योगी के पास संयम अंगीकार कर लेते हैं! नंदन मुनि ने 11 लाख 60 हजार मास खमण किए और तीर्थंकर नाम गोत्र का बंध किया! कर्म सत्ता को भोगना ही पड़ता है और मरीची के जीवन का दुख भोगना बाकी था!