चेन्नई. बुधवार को पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम मेमोरियल सेन्टर में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सान्निध्य में साध्वी डॉ.सुप्रभा ने कहा जिनवाणी में बताई गई बातों की प्रशंसा नहीं उन्हें पसंद करें तो हमारा जीवन आदर्श बन जाए।
समाधि शतक में कहा गया है कि इस संसार में ऐसे अबोध लोग हैं जो समझते हैं कि आत्मा पुरुष में पुरुष आत्मा और नारी में नारी आत्मा, पशु में पशु आत्मा, देव में देव आत्मा होती है, लेकिन आत्मा का कोई भी प्रकार, लिंग, रंग, रूप, नाम और आकार नहीं होता है वह तो शाश्वत और अनन्त है।
इस आत्मा का अनेकों बार जन्म हुआ है, इसका असली नाम बता पाना मुश्किल है। ज्ञानी कहते हैं कि अपनी आत्मा के उस शाश्वत स्वरूप को जानें, उसकी प्रशंसा करें। आत्मा को जानना परमात्मा को जानना है।
साध्वी हेमप्रभा ने कहा संतों की आहार गोचरी यानी इस प्रकार से होती है कि दाता गृहस्थ को देने में कष्ट न हो। संत भगवंतों की आहार लेने की क्रिया को गौ और मधु की उपमा दी गई है जो गाय और भंवरे के समान अपना आहार लेते हैं। भंवरे के द्वारा पुष्प से मधु लेने के बाद भी पुष्प को कोई हानि नहीं होती है।
हमें जानना आवश्यक है कि किस प्रकार संतों को आहार देने योग्य हम बन सकें। मात्र संतों को आहार न दे पाने का पश्चाताप करने में ही 10 प्रकार से देव-आयुष्य बंधता है। तो तपस्वीयों को आहार देने पाने का सौभाग्य तो कितना ज्यादा है इसका अनुमान हो सकता है।
संतों के भी आहरचर्या के अपने नियम होते हैं, इसलिए उनकी आवश्यकता को ध्यान में रख, अपनी भावना और शब्दों में विवेक के साथ आहार बहोराना चाहिए। कभी भी आए हुए संत, मेहमान और वर्षा का अनादर न करें ये पुण्यशाली को ही मिलते हैं।
मनुष्य छह प्रकार के अभ्यंतर तप – मोहराजा की आज्ञा से लाचारीवश कर लेता है लेकिन यदि धर्मराजा की आज्ञा से कर ले तो जन्मांतर के बंध नष्ट हो जाएं।
चातुर्मास समिति के प्रचार-प्रसार मंत्री हीराचंद पींचा ने बताया कि धर्मसभा में प्रश्नमंच के बाद हीना सुराणा, शिल्पा कोठारी, रिया ललवाणी के ९ उपवास तपस्या के पच्चखान हुए। श्री मधुकर उमराव अर्चना चातुर्मास समिति ने तपस्वी बहनों का सम्मान किया गया।
25 जुलाई से आनन्द जन्मोत्सव की अठाई तप की शुरुआत, 27 जुलाई को महाविदेह क्षेत्र की भावयात्रा कराई जाएगी। दोपहर 2 बजे से धार्मिक परीक्षा आयोजन रखा गया है।