आचार्य शिवमुनि की जयंती आज
चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर व साध्वी डॉ.सुप्रभा के सानिध्य में साध्वी डॉ. इमितप्रभा ने कहा उत्तराध्ययन में आत्मा के दो भेद बताए हैं सिद्ध और संसारी। जिन्होंने परमपद को प्राप्त कर अनन्त सुख में लीन हैं वे सिद्ध परमात्मा बने हैं और संसारी जीव जो इस जगत में हैं।
सिद्ध तीन तरह से होते हैं- पहले स्वयंबुद्ध, जो तीर्थंकर होते हैं उन्हें किसी प्रकार की प्रेरणा नहीं दी जाती। दूसरे बुद्धबोधि, जो बुद्ध ज्ञानीजनों से ज्ञान प्राप्त कर सिद्ध बने हैं। तीसरे तत्वबुद्ध जो किसी निमित्त से वैराग्य भाव, दीक्षा प्राप्त कर मुक्त होते हैं। ये तीनों परमलक्ष्य मोक्ष प्राप्त करने के माध्यम हैं।
समकित होंगे तो आत्मा की अनुभूति कर सिद्ध बनते हैं। मोह को कम करें तो समकित प्राप्त होगा। सिर पर लगा मुकुट शोभा है लेकिन वह सिर की पीड़ा दूर नहीं करता, इसका उपचार करना ही होगा।
साध्वी डॉ.उन्नतिप्रभा ने कहा कि महापुरुषों ने भवि जीवों को कल्याण देशना देते हुए कहा है कि इस संसार में व्यक्ति को भटकाने और रुलाने वाला मोह आठ कर्मों का मैनेजर मोहनीय कर्म है। यह जीव को वश में कर रंक, दास, स्वामी की भूमिका अदा करने का जैसा आदेश देता है, जीव वैसा ही करता है और 84 लाख जीवायोनियों में भ्रमण करता हुआ रोता व दुख उठाता है लेकिन फिर भी मोह में रमण करता है, इसे छोड़ता नहीं।
शरीर को सभी सजाते, संवारते हैं लेकिन यह एकदिन मिट्टी में मिलने वाला है। आगमों में महासती सुंदरी और ब्रह्माणी का प्रसंग आया है जिन्होंने शरीर का ममत्व त्याग श्रावकधर्म अपनाया और मोक्षमार्ग पर अग्रसर हुईं।
आत्मा के लिए शरीर एक कैदखाना और अशुचि का निवास है लेकिन मनुष्य इसे इससे छूटने के बजाय मोह रखता है। इतना ध्यान रखने के बाद भी इसको जरा-सी पीड़ा हो तो हायतौबा करता है। किसी के वस्त्र, आभूषण देखकर आकर्षित होता है।
धर्मसभा में साध्वी नीलेशप्रभा के सांसारिक भाई दिनेश पटेल का सम्मान किया गया। उत्तम कोठारी और राजेन्द्र लोढ़ा ने विचार रखे और महेन्द्र लोढ़ा ने भजन प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर ऊटी, छत्तीसगढ़ सहित अनेकों स्थानों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। 18 सितम्बर को आचार्य शिवमुनि की जयंती मनाई जाएगी। 19 से 21 सितम्बर को आचार्य शिवमुनि की प्रेरणा से त्रिदिवसीय स्वाध्याय शिविर, 25 सितम्बर से त्रिदिवसीय आत्मध्यान साधना शिविर होगा।