चेन्नई. साहुकारपेट के जैन भवन में विराजित साध्वी सिद्धिसुधा ने कहा कि माया के चक्कर मे मनुष्य दर्द झेल रहा है। जबकि कषायों को छोड़ कर मुक्ति प्राप्त कर सकता है। आत्मा का भाव लोक से भी प्यारा होता है।
उस भाव को समझ कर जीवन का उद्धार करने का प्रयाश करना चाहिए। साध्वी समिति ने कहा कि जैसे बीमारी के समय मनुष्य अस्पताल जाता है और दवा लेकर साही होता है। वैसे ही भावों के बीमारी को दूर करने के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है।
परमात्मा ने भावों के अलग अलग समस्याओ को दूर करने का मार्ग बतलाया है। उन मार्गों का अगर अनुसरण किया जाए तो मनुष्य के जीवन से सभी तकलीफ दूर हो सकती है। उन्होंने कहा कि वंदना, प्रतिक्रमण और कायोत्सर्ग के माध्यम से भव की बीमारी दूर होती है। कायोत्सर्ग से मनुष्य के बंधे पाप खत्म होते है। उन्होने कहा कि काया का त्याग करना ही कायोत्सर्ग होता है।
मनुष्य को जीवन मे सबसे ज्यादा शरीर से प्यार है। लेकिन भगवान महावीर कहते है कि शरीर और आत्मा अलग है। इसे समझना बहुत जरूरी है। ऐसा कायोत्सर्ग जीवन मे गठित होने के बाद ही यह पता चलेगा। प्रतिक्रमण में लोग अपने पापों की आलोचना करते है। आलोचना में जो छूट जाता है उसे कायोत्सर्ग से साफ किया जा सकता है। वर्तमान में लोग आत्मा से पहले शरीर पर ध्यान देते है। उन्हें लगता है कि शरीर उनका है। लेकिन याद रहे कि मनुष्य का सिर्फ आत्मा है।
शरीर के प्रति मोह को त्यागना ही कायोत्सर्ग होता है। शरीर के लिए तो मनुष्य ने बहुत किया अब आत्मा को शुद्ध बनाने की ओर बढ़ना चाहिए। ऊपर के मन से शुध्दिकरण करने के कारण आत्मा और भाव का तालमेल नही बन पा रहा है। बाहर भटकने वाला मन काबू में आ जाये तो सही मायने में कायोत्सर्ग गठित होता है। कायोत्सर्ग के दौरान लाख परेसानी आये पर मन को नियंत्रित और आत्म भाव मे: होना चाहिए। शांति से कायोत्सर्ग करना चाहिए।
जब तक आत्मा की मुक्ति नही होगी तब तक मनुष्य की मुक्ति संभव नही है। शरीर का मोह छोड़ कर आत्मा में लग जाना चाहिए। जीवन मे आगे जाना है तो पापों से मुक्त होने की कोशिश करें। रविवार को तप और त्याग के साथ मिश्रीमल और रूपमुनि की जयंती मनाई जाएगी।