पर्वाधिराज पर्व पर्युषण मंगलवार से, भिक्षुदया की लक्की ड्रा विजेता को स्वर्णमुद्रिका से नवाजा
बेंगलूरु। विश्वविख्यात अनुष्ठान आराधिका, ज्योतिष चंद्रिका व शासनसिंहनी साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी ने कहा कि 27 अगस्त से प्रारंभ होने वाले पर्वाधिराज पर्युषण पर्व में समता की साधना करते-करते यदि जीवन में विषमता आती है तो चिंतन जरुरी है। उन्होंने परमात्मा में अपनी आत्मा के तार को जोड़कर ममता-माया को छोड़कर समताभाव में आने की सीख दी।
साध्वीश्री ने कहा कि निस्वार्थ भाव से मानवता व दीनदुखियों-जरुरतमंदों की सेवा करनी चाहिए। गुरु दिवाकर केवल कमला वर्षावास समिति के तत्वावधान में सोमवार को यहां वीवीपुरम स्थित महावीर धर्मशाला में डाॅ.कुमदलताजी ने अपने प्रवचन में शिक्षाव्रत व सामायिक के महत्व पर भी विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने समता, ममता, यतना और करुणा शब्दों को सामायिक शब्द से जोड़ते हुए इसकी व्याख्या की।
साध्वीश्री ने कहा कि सेवा दिखावे की नहीं, बल्कि आचरण की वस्तु है। सेवा धन के द्वारा दान करके तथा तन-मन से की जाती है। तन-मन से की जाने वाली सेवा का अवसर प्राप्त करने वाले को तीर्थंकर गोत्र का उपार्जन भी होता है। साध्वीश्री ने 8 दिवसीय पर्युषण पर्व में कर्मनिर्जरा के लिए किए जाने वाले आवश्यक तपकर्मों में दया, पौषध, एकासन, आयंबिल व तेले आदि की व्यवस्थाओं में समिति की सुचारु रुप से की गई जिम्मेवारियों से अवगत करवाया।

इससे पूर्व साध्वीश्री महाप्रज्ञाजी ने कहा कि प्रभु महावीर ने प्रेम, आनंद, सद्गुणों व ज्ञान-दर्शन-चारित्र के माध्यम से सभी से व्यवहारकुशलता से रहना तथा जीवन को पवित्र बनाना सीखाया। साध्वीश्री ने कहा कि इस नश्वर जीवन में अच्छे कर्मों की बदौलत ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। महाप्रज्ञाजी ने कहा कि दो अक्षरों का छोटा सा शब्द सेवा व्यक्ति के जीवन के लिए महत्वपूर्ण होता है।
उन्होंने कहा कि सेवा किसी बाजार में नहीं मिलती है, यह व्यक्ति के हृदयरुपी दुकान में ही मिलती है। साध्वीश्री डाॅ.पद्मकीर्तिजी ने मंगलवार से पर्युषण पर्व के दौरान प्रतिदिन प्रातः 6.30 बजे से प्रार्थना, 8.30 बजे से अंतकृतदशांगसूत्र के वाचन तथा 9.15 से प्रवचन की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि दोपहर के सत्र में दो बजे से कल्पसूत्र का वाचन होगा। सूर्यास्त के बाद प्रतिक्रमण होगा। पद्मकीर्तिजी ने बताया कि आठ दिनों तक गुरु दिवाकर दरबार में नवकार मंत्र का अखण्ड जाप भी होगा।
साध्वीश्री राजकीर्तिजी ने गीतिकाएं प्रस्तुत की। समिति के महामंत्री चेतन दरड़ा ने बताया कि एक दिवस पूर्व समिति के तत्वावधान में वृहद स्तर पर सफलता के साथ आयोजित हुए भिक्षुदया के कार्यक्रम में भाग लेने वाले श्रावक-श्राविकाओं में लक्की ड्रा के माध्यम से श्राविका धापूबाई को स्वर्णमुद्रिका प्रदान की गई।
उन्होंने बताया कि धर्मसभा में इचलंकरजी सहित शहर के विभिन्न उपनगरों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। समिति के सहमंत्री अशोक रांका ने बताया कि जयजिनेंद्र प्रतियोगिता के विजेताओं में क्रमशः स्वीटी सालेचा, कल्पना व दिलीप ओस्तवाल को पुरस्कृत किया गया। विभिन्न प्रकार की तपस्याएं करने वाले श्रावक-श्राविकाओं को साध्वीवृंद द्वारा पचखान कराए गए। चेतन दरड़ा ने संचालन किया। सभी का आभार कोषाध्यक्ष गुलाबचंद पगारिया ने जताया।